पिता को समर्पित चतुर्थ दिवस-एक ख़त पिता के नाम

एक ख़त पिता जी के नाम

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 11 Feb, 2022 | 1 min read
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Day-04


पिता को समर्पित चतुर्थ दिवस के दिन आज एक ख़त अपने पापा के नाम। ख़त अंत तक पढ़ें, विनम्र अनुरोध।


पूज्यनीय पापा जी,

           सादर चरणस्पर्श!


पापा जी आपके तीनों पुत्र सह परिवार के सभी सदस्य यहाँ सकुशल हैं। प्रयास करता हूँ कि माँ को आपकी कमी महसूस न हो, पर यदाकदा माँ को जब आपकी याद आती हैं तो माँ की आँखें आँसू बहाने लगती हैं। हम तीनों भाई यह प्रयास करते हैं कि माँ ख़ुश रहे। मैंने ,भाईयों ने जीते जी आपको सुख प्रदान नहीं किया, जब हम बड़े हुए आपकी मदद करने लायक हुए तब आप ही नहीं रहे। ईश्वर ने हमारी ज़िंदगी से असमय आपको चुरा लिया। हमारे अंदर ईश्वर द्वारा लिया गये निर्णय को बदलने की क्षमता होती तो फौरन ईश्वर की निर्णय को बदल देता, पर असमर्थ हूँ। आपको पुनः पाना नामुमकिन है, क्योंकि बरसों से सुनते आया हूँ कि जाने वाले इतने दूर चले जाते हैं कि लौटकर नहीं आते।

          पापा आप जब साथ थे, तब किसी चीज़ की कोई दिक्कत न होती थी महसूस। आपकी उपस्थिति घर में रौनक बिखेरे रहती थी। और आज जब आप की उपस्थिति आँगन में दर्ज़ नहीं है तो ऐसा लगता है कि सबकुछ होकर भी सूनापन पसरा है। काश! यह संभव होता कि आप लौट आते ईश्वर से अनुरोध कर। पर ऐसा मैं सोच ही सकता हूँ केवल, शायद मेरी यह अभिलाषा कदापि पूर्ण न होगी।

मुझे स्मरण है पापा जब मैं चाचा के घर पर टेलीविजन देखने जाता था और जब घंटों बाद अपने घर आता था, तो आपकी मीठी डाँट सुनने को मिलती थी। तब आप समझाते हुए कहते थे कि बेटे! टेलीविजन में जिन्हें तुम देखने जाते हो वे लोग बहुत पैसे कमाते हैं, और तुम टेलीविजन देखकर समय बर्बाद करते हो बेटे! बेटे! तुम यह समय पढ़ाई में लगाओ। तब मैं आपकी बातों से प्रेरित होकर अनोखे सपनों में खो जाता था।  आपकी कही वह बात आज भी स्मृति पटल पर अंकित है।

पापा मेरी कुछ अभिलाषाएं हैं जो साझा करना चाहूंगा आपसे, जानता हूँ मेरा यह ख़त अवश्य आप तक पहुंचेगा। क्योंकि मन से लिखी या कही बात देवलोक तक अवश्य ही पहुंचती है। पापा! पुनः आपके दोनों पाँवों को दबाकर आपकी थकान दूर करने की अभिलाषा है। पापा जिस तरह नहाने वक्त आपके पीठ को रगड़ कर पीठ पर जमे मैल को मैं साफ करता था उसी तरह पुनः आपके तन को स्पर्श करने की अभिलाषा है। पापा मेरी अभिलाषा है कि पुनः आप लौट आएं देवलोक से और लगा लें आप मुझे सीने से और मैं आपको। पापा चाहता हूँ कि आप पुनः यहाँ आकर माँ के जीवन में व्याप्त सूनेपन को हर लें। 

        पापा! आपका छोटा-सा लाडला आपकी अनुपस्थिति में भी ख़ुद को ही नहीं परिवार के समस्त सदस्यों को संभाले हुए है। आपका लाडला कदापि ऐसा कोई कर्म न करेगा जिससे आपकी छवि धूमिल होगी। आज जब आपके दिए संस्कार से सर्वत्र स्नेह पाता हूँ तो मन लाख बार आपका धन्यवाद ज्ञापित करता है। आपका स्नेहाशीष हम तीनों भाईयों के ऊपर सह परिवार के समस्त सदस्यों के ऊपर कायम रहे। जब ज़िंदगी से होऊं निराश कभी तो पापा हिम्मत बढ़ाने हेतु दीजिएगा हिम्मत। पापा जीवन के किसी भी मोड़ पर न होऊं निराश इस हेतु दीजिएगा हर क्षण आशीष। ईश्वर आपको वहाँ ख़ुश रखें। 


आपका लाडला पुत्र

©कुमार संदीप

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