पता है शिक्षक विशेष ख्वाहिश
नहीं रखते हैं हम विद्यार्थियों से
बस शिक्षक की यही दिली ख्वाहिश रहती है
कि हम पढ़-लिखकर जगत का नाम रोशन करें।।
पता है शिक्षक भी होते हैं निराश
तब, जब हममें से कोई विद्यार्थी
सर्वोच्च पद पर आसीन हो जाने के पश्चात
अपनों को ही भूलने लगता है,
ख़ुद को श्रेष्ठ समझने लगता है।।
पता है शिक्षक ताउम्र शिक्षण कार्य ही
क्यों न करें? पर उनके पढ़ाए बच्चे
जब बनते हैं पदाधिकारी
तब शिक्षक का सीना गर्व से
चौड़ा हो जाता है, तब उनके दिल से
उस बच्चे के लिए दुआएँ निकलने लगती हैं।।।
पता है शिक्षक बिल्कुल हमारे पिता की तरह होते हैं
जिस तरह हमारे पिता हमसे अगाध प्रेम करते हैं
अपनी ख्वाहिशों की आहुति देकर
बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को निर्मित करते हैं
ठीक उसी तरह
शिक्षक भी ख़ुद को हमारे उज्ज्वल भविष्य के लिए
समर्पित करते हैं, और बना देते हैं हमें
अनमोल हीरा, जिसकी चमक से
रोशन हो जाती है पूरी दुनिया
तब शिक्षक का दिल
ख़ुशियों से झूमने लगता है।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
Comments
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बहुत ही बेहतरीन एवं सटीक विश्लेषण किया भाई!
धन्यवाद सर जी
बेहतरीन
धन्यवाद मैम
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