Day-06
छठवां दिन भी अपनी माँ को समर्पित है। मेरी माँ दुनिया की सबसे अच्छी माँ है,यदि मैं यह कहूंगा तो कहीं न कहीं मैं अन्य माँओं को कम आंकूंगा। पर मैं यह कतई नहीं कहूंगा, मेरे विचारानुसार दुनिया की हर माँ खास है। क्योंकि माँ अल्पज्ञ हो अथवा बहुज्ञ संतान की झोली में प्रेम की बारिश नियमित रुप से करना माँ का विशेष गुण होता है।
मेरी माँ मेरा किस हद तक, कितना ख्याल रखती है यह शब्दों में वर्णित कर पाने में मैं पूर्णतः असमर्थ हूँ। मेरे लिए परिवार के लिए मैंने हर पल माँ को चिंतित होते देखा है। अभी भी माँ मुझ पर मेरे भाईयों पर उतना ही स्नेह लुटाती है,जितना पहले। अर्थात् माँ उम्र के किसी भी पड़ाव में क्यों न हो? माँ संतान के हिस्से में प्रेम की वर्षा करना कम नहीं करती हैं। माँ का यह विशेष गुण ही माँ को इस जगत की श्रेष्ठ शख्सियत सिद्ध करती है।
सोशल मिडिया से दूर तक नाता नहीं फिर भी रिश्तों की डोर को मजबूत रखती है माँ- माँ अभी भी बटन वाला फोन यूज़ करती है। पर रिश्तेदारों से नियमित रुप से संवाद स्थापित कर रिश्तों की डोर को करती है मजबूत। भले ही मेरी माँ के साथ किसी रिश्तेदार का व्यवहार प्रतिकूल ही क्यों न हों, पर माँ कदापि किसी से मनमुटाव नहीं रखती है। आज की माँएं जहाँ स्मार्टफोन में ही व्यस्त रहती हैं बच्चों को उतना स्नेह नहीं देती हैं वहीं इस मामले में मैं खुशकिस्मत हूँ कि मेरी माँ का अपार स्नेह मुझे आज भी उतना ही मिलता है जितना पहले। सौभाग्यशाली हूँ कि मेरी माँ मेरे जीवन में है।
औलाद की ख़ुशी प्रथम स्थान पर- खाने की चीज़ विशेष हो अथवा सामान्य प्रथमतः माँ मुझे और भाईयों के सामने ही परोसती है खाने के लिए। माँ का यह गुण माँ को विशेष बनाता है। त्योहार सामान्य हो अथवा विशेष, ख़ुद के लिए हर बार नवीन कपड़े लेने के लिए माँ ना कहती है पर मेरे लिए व परिवार के अन्य सदस्यों के लिए कपड़े किसी न किसी तरीके से खरीदने की इच्छा प्रकट करती ही है।
कठिन परिस्थिति में भी ख़ुद को संभाले रखना- माँ के जीवन में उस वक्त दुख का पहाड़ टूट गया जब पापा! बीमारी की वजह से असमय ईश्वर की शरण में चले गए। माँ तब टूट गई थी पूरी तरह, पर समय जिस तरह समय गुज़रा माँ ने न केवल स्वयं को संभाला बल्कि अपने तीनों बेटे को भी संभाला। आज भी माँ पापा को याद कर होती है मायूस तो अपनी मायूसी नहीं दर्शाती है हम तीनों भाईयों के समक्ष, किसी कोने में जाकर मन ही मन रोकर मन हल्का कर लेती है। पर हमें न रोने के लिए कहती है और कहती है कि "बेटे चाहे ज़िंदगी में मुश्किलें सूक्ष्म हो अथवा दीर्घ हिम्मत हारने मत देना, मुश्किलों से डरकर नहीं डटकर सामना करना।
थोड़े में ही ख़ुश रहने की सीख देती रहती है माँ- माँ ने अपने जीवन के आरंभ से अभावों का सामना किया है। निर्धनता को माँ ने करीब से देखा है। माँ अक्सर मुझे और भाईयों को यह सीख देती है कि बेटे ईश्वर ने हमें जितना दिया है उतने में ही हमें ख़ुश रहना चाहिए।
निष्कर्ष- माँ चाहे किसी की भी हो, माँ की शख्सियत को चंद शब्दों में वर्णित करने का कार्य असंभव है।
©कुमार संदीप
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