मन ने मनिषा से कहा, "तू क्यों देखती है बड़े सपने आँखें मूंद कर? तेरे हौंसले के पंख को हर बार तेरे परिवार वाले कुतरने का काम करते हैं। यहाँ तक कि तुम्हारे पड़ोसी भी नहीं चाहते हैं कि तुम आगे बढ़ो कुछ बेहतर करो। लड़कियों को आज भी आगे बढ़ने की इजाज़त समाज नहीं देता।" मन की कही इन बातों को सुनकर मनिषा ने पूरी ताकत से एक तमाचा मन के गाल पर जड़ दिया। तमाचा जड़ते हुए अब मनिषा ने मन से कहा, "तेरी बात सच है। पर मैं समाज की बेड़ियों में बंधकर नहीं रहूंगी! तू मुझे हतोत्साहित मत कर! मैं जा रही हूँ आत्मविश्वास का पंख तन पर लगाकर सपनों की दुनिया में भ्रमण कर सफलता के फल का स्वाद चखने।।" यह कहते हुए मनिषा किताबों को पढ़ने में लीन हो गई।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
Comments
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Bahut sundar story hai sir samaj kabhi bhi ek larki ko aage badhane nahi deji par jo larki samaj kee bat na mankar apan man ki bat manati hai tab vah larki ek Deen Indra Gandhi and Lata Mangeshkar ban kar samaj ko ek seekh deti hai ki ab larke and larki me koi fark nani jai nari sakti
धन्यवाद अमरजीत सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
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