अमरजीत ! "कहने तो हम अँग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्र हो गए, परंतु वास्तव में हम आज भी गुलाम हैं। आजादी के बाद भी नारियों को वो अधिकार नहीं दिया गया है जिसकी वह असल हकदार है। नारी शक्ति को घर की चारदीवारियों के बीच कैद कर पुरुष ख़ुद को श्रेठ समझता है।" मित्र की बात पर सही का मुहर लगाते हुए सचिन ने कहा, "सहमत हूँ तुमसे पर कहीं न कहीं इसके लिए ज़िम्मेदार नारी भी है। नारी को बंधन की बेड़ियों से बाहर निकलना होगा। अन्यथा वह आगे नहीं बढ़ सकती है। इतना कहते हुए सचिन आगे बढ़ गया।"
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
Comments
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!! Have a wonderful story !!
आपकी कहानी सही बात दर्शाती है। मैं खुद शादी से पहले कमाती थी, जब शादी का प्रस्ताव स्वीकार किया तो काम छोड़ने की शर्त भी मानली और आज तक उस बात से अफसोस करती हूँ। अब अपनी दो बेटियों को वोह गलती न करने दूँगी।
धन्यवाद अमरजीत
धन्यवाद मैम
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