फोन का सदुपयोग जहाँ एक ओर हमें अधिक ज्ञान अर्जित करने में मदद करता है वहीं इसका दुरुपयोग कर हम न केवल आज बल्कि अपना कल भी बर्बाद कर देते हैं। इसलिए यह अति आवश्यक है कि हम इसका सदुपयोग करें।
बच्चे हमेशा ही बड़ों से ही विचार, व्यवहार व कार्य करने के क्रियाकलाप सीखते हैं, समझते हैं। यदि हम अच्छे हों तो यकीनन हमारे बच्चे भी कुछ हद तक ज़रूर अच्छे होंगे। इसलिए बच्चों से मधुर व्यवहार की अपेक्षा करने से पूर्व हमें भी अपना व्यवहार मधुर करना पड़ेगा। आज के समय में फोन की लत से क्या बच्चे बड़े भी बचे नहीं हैं। यदि आप घर के बड़े हैं और यह अपेक्षा रखते हैं कि हमारे बच्चे फोन का प्रयोग कम करें तो सर्वप्रथम आपको भी अपनी आदतों में बदलाव लाना होगा। तभी आपके बच्चे भी बदलाव की ओर कहीं-न-कहीं स्वयं क़दम बढ़ाएंगे।
अपनाएं ये टिप्स ताकि बच्चे फोन की लत को कहें "बाय"
१)ख़ुद फोन का प्रयोग करना कम करें- अपने दोस्तों के संग व्हाट्सएप या फेसबुक मेसेंजर पर घंटों बिना वजह चैटिंग करने की आदत आपके अंदर भी है तो सर्वप्रथम इस आदत को त्याग दें। अन्यथा जब आप अपने बच्चे को फोन ड्राइव करने से मना करने जाएंगे तो आपके बच्चे आपसे प्रश्न कर सकते हैं कि पापा! आप मुझे तो फोन चलाने से मना कर रहे हैं और ख़ुद आप घंटों फोन चलाते हैं। तो बदलाव सर्वप्रथम ख़ुद के अंदर अति आवश्यक है।
२)खुले मैदान में गेम खेलने के फायदे बताएं- बच्चे अधिकांशतः फोन का प्रयोग गेम खेलने के लिए करते हैं, बच्चों को बताएं फोन पर गेम खेलने से होने वाली हानियों के विषय में। फोन पर गेम खेलने से कतई शारीरिक व मानसिक विकास संभव नहीं है। इसलिए बच्चों को अपने निकट बैठाकर प्रेम से समझाएं कि फोन पर गेम खेलने की बजाए खुले मैदान में जाकर गेम खेलें। ऐसा करने से न केवल उनका शारीरिक विकास होगा बल्कि मानसिक विकास भी होगा।
३)मनोरंजक गेम की जगह लर्निग गेम इंस्टॉल की सलाह- मनोरंजक गेम की जगह ऐसे कई एजुकेशनल एप्लिकेशन प्ले स्टोर पर मौजूद हैं जो हमारे अंदर ज्ञान में वृद्धि करते हैं। इसलिए बच्चों को उन गेम्स के विषय में बताएं, उसके फायदे के संदर्भ में उन्हें अवगत कराएं। बच्चे जब लर्निंग गेम्स फोन पर चलाएंगे तो आपको भी यह बात नहीं खलेगी कि मेरे बच्चे फोन का दुरुपयोग कर रहे हैं।
४)डांटकर नहीं प्रेम से समझाकर अपनी बात रखें- फोन के लगातार प्रयोग करने से कई बार अभिभावक बच्चों से क्रोधित होकर फोन को ही फोड़ देते हैं या दीर्घ अंतराल के लिए बच्चे से फोन ले लेते हैं, ये सही नहीं है। इससे कहीं-न-कहीं बच्चों के मस्तिष्क पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। आपको यदि अपनी बात बच्चों के समक्ष रखनी ही है तो उसे अपने पास बुलाकर प्रेम से समझाइए। बच्चों को बताइए कि वक्त और जीवन कितना कीमती है। इन दोनों की एहमियत न समझना मतलब अपने भविष्य को बर्बाद करना है, उम्मीद ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि बच्चे भी आपकी बात यकीनन समझेंगे और ख़ुद के अंदर परिवर्तन लाएंगे।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
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