पिता!
पिता बादल के समान है
जिस तरह बादल अपना समूचा अस्तित्व समाप्त कर
तप्त धरती को शीतलता प्रदान करता है
ठीक बादल की तरह पिता भी
तपते हैं धूप में खपाते हैं ख़ुद को
और हमारे हिस्से में भरते हैं
ख़ुशी की शीतल छाँव।।
पिता!
पिता प्रेम के अक्षय भंडार होते हैं
ख़ुद से प्रेम ख़ुद ही नहीं करते हैं
पर..हमारे हिस्से में कभी भी, किसी भी पल
प्रेम का प्रतिशत कम नहीं होने देते हैं।।
पिता!
पिता घर में हैं उपस्थित
तो दुख का संतान के इर्दगिर्द भी
भटकना नहीं है सुनिश्चित
पिता हैं घर में उपस्थित
तो ईश्वर का कीजिए धन्यवाद ज्ञापित।।
पिता!
पिता के चेहरे पर पसरी झूर्रियाँ
देख मत करें अनसुना
सुनें उनके अंतर्मन की पीड़ा
और करके प्रयत्न भर दें
उनके हृदय में ख़ुशियों के अनगिनत पुष्प।।
पिता!
पिता जब ज़िंदगी के थपेड़ों से हो मायूस बेहद
जाकर पिता के निकट
बाँटने का कीजिए प्रयत्न थोड़ा दुख
अपनी अनावश्यक ज़िद का त्याग कर
पिता के अवर्णनीय त्याग को समझिए।।
पिता!
पिता जब आते हैं घर पर, शहर से काम कर
लाते हैं बेटे-बेटियों के लिए-
खिलौने, मिठाईयाँ, चॉकलेट
अपनी अर्धांगिनी के लिए-
बिंदियाँ, पायल, सिंदूर
पर कभी भी नहीं लाते हैं ख़ुद के लिए
कुछ भी तनिक भी क्योंकि उनके चेहरे पर
पसरती है ख़ुशी तब
जब परिवार का हर सदस्य
मुस्कुराता है बेइंतहा।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
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