आठ वर्षीय अमरजीत ने जब अपनी माँ से प्रश्न किया, "माँ! हम ख़ुद के संदर्भ में ही हर घड़ी चिंतित रहते हैं। हम दूसरों के लिए क्यों नहीं चिंतित रहते हैं?" बेटे द्वारा किए गए इस प्रश्न से माँ आश्चर्यचकित हो गई। माँ ने बेटे से कहा, "बेटे! अचानक तुम्हारे मन में यह प्रश्न क्यों उत्पन्न हुआ? तब बेटे ने चिंता जाहिर करते हुए कहा, "माँ! भूख से बिलखते छोटू को गली में रोते देख कल मैं बहुत दुखी हुआ। उस वक्त उसके इर्दगिर्द अनगिनत लोग मौजूद थे, पर किसी ने उसके दुख को भाँपने की कोशिश नहीं की। यह दृश्य देखकर मैं भी उस वक्त रोने लगा माँ, माँ! विद्यालय में शिक्षक जी कहते हैं कि हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए। फिर क्यों छोटू और उसके परिवारवालों की दयनीय स्थिति देखकर गाँव के संपन्न लोग भी मुँह फेड़ लेते हैं?" नन्हे लाडले द्वारा पूछे गए प्रश्न को सुनकर माँ मौन हो गई। कुछ देर के अंतराल के पश्चात माँ ने कहा, "बेटे! तुम्हारी चिंता जायज है। पर, इस जगत के लोग अज़ीब हैं। किसी ज़रुरतमंद की आँखों से बहने वाले बेजुबान आँखों के पानी के दर्द को महसूस करने वाला यहाँ कोई नहीं है। हमें ज़िन्दगी की मार ख़ुद के तन पर ही सहन करनी पड़ती है। गरीबी जो रंग दिखाती है वह भयावह होता है।" माँ का जवाब सुनकर अमरजीत गहरे मौन में खो गया, और ईश्वर की तस्वीर के सामने जाकर ईश्वर से छोटू की दयनीय दशा दूर करने हेतु प्रार्थना करने लगा।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
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