"माँ! मैं कल से विद्यालय और कोचिंग नहीं जाऊंगी। तंग आ गई हूँ मैं कुछ लोगों से। मेरा रंग काला है इसमें मेरी क्या ग़लती है माँ? विद्यालय में और कोचिंग में मुझे सभी काली कहकर चिढ़ाते हैं।" प्रिया ने रोते हुए अपने दिल की बात अपनी माँ से कह दी। अपनी नन्ही गुड़िया रानी प्रिया को समझाते हुए माँ कहती है, "प्रिया तुम्हारा रंग काला है इसलिए सभी तुम्हें काली कहकर चिढ़ाते हैं, तो इस हेतु तुम तनिक भी चिंतित न हो। रंग काला या गोरा ईश्वर की मर्जी पर निर्भर है। तुम पढ़- लिखकर अपनी एक अलग पहचान बनाओ। लोगों को ख़ुद -ब-ख़ुद जवाब मिल जाएगा कि रंग और रुप मायने नहीं रखता। इंसान अपनी प्रतिभा के बल पर अपनी एक अलग पहचान बना सकता है बेटी। ज़रूरी नहीं कि गोरे लोग ही इतिहास रच सकते हैं। लोगों का काम है कहना तुम चिढ़ने की बजाय मुस्कुराकर उनकी बातों को अनसुना कर दिया करो और पूरी लगन से मेहनत करो, इतिहास रचो।" माँ की बातों को सुनकर प्रिया के रग-रग में जोश भर गया। वह कदापि न चिढ़ने का प्रण लेती है साथ ही एकाग्रता से पढ़कर इतिहास रचने हेतु माँ को वचन देती है।
©कुमार संदीप
मौलिक,स्वरचित, अप्रकाशित
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