असहाय

प्रकृत जब रौद्र रुप दिखाती है हर प्राणी को बेइंतहा सताती है।

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 04 Aug, 2020 | 1 min read
Short story Flood



पसीने से तरबतर रिपोर्टर बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में जाकर जगुआ जो माथे पर हाथ रखकर रोए जा रहा था उससे प्रश्न करता है, "क्या आप अपनी आप बीती बताएंगे? बाढ़ की वजह से कितना नुक्सान हुआ है आपका?" "साहब! किताब पढ़ना पूरी तरह आता होगा आपको, शायद आपको चेहरा पढ़ना तनिक भी नहीं आता है। खैर छोड़िये साहब! दीन दुखियों के दुख को महसूस करना असहाय परिवार की आँखों से निकलने वाले आंसुओं की पोंछना भला कौन चाहता है। न तो सरकार, न ही सुखी संपन्न परिवार। साहब! अब अपना कुछ बचा ही कहाँ है तन के सिवा।" रिपोर्टर की आँखों से सहसा आंसू की दो बूंद निकलकर नदी में समा गया। व जगुआ भी इतना कहने के पश्चात मन भर रोने लगा।

©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित

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Kumar Sandeep

Kumar_Sandeep

Comments

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  • Sunita Pawar · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत मार्मिक रचना

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    धन्यवाद मैम

  • Student · 4 years ago last edited 4 years ago

    Such kha brother 🙏💐👍👌

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    धन्यवाद

  • Namrata Pandey · 4 years ago last edited 4 years ago

    बेहद मार्मिक

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    धन्यवाद आपका

  • Ektakocharrelan · 4 years ago last edited 4 years ago

    मार्मिक

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