पसीने से तरबतर रिपोर्टर बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में जाकर जगुआ जो माथे पर हाथ रखकर रोए जा रहा था उससे प्रश्न करता है, "क्या आप अपनी आप बीती बताएंगे? बाढ़ की वजह से कितना नुक्सान हुआ है आपका?" "साहब! किताब पढ़ना पूरी तरह आता होगा आपको, शायद आपको चेहरा पढ़ना तनिक भी नहीं आता है। खैर छोड़िये साहब! दीन दुखियों के दुख को महसूस करना असहाय परिवार की आँखों से निकलने वाले आंसुओं की पोंछना भला कौन चाहता है। न तो सरकार, न ही सुखी संपन्न परिवार। साहब! अब अपना कुछ बचा ही कहाँ है तन के सिवा।" रिपोर्टर की आँखों से सहसा आंसू की दो बूंद निकलकर नदी में समा गया। व जगुआ भी इतना कहने के पश्चात मन भर रोने लगा।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत मार्मिक रचना
धन्यवाद मैम
Such kha brother 🙏💐👍👌
धन्यवाद
बेहद मार्मिक
धन्यवाद आपका
मार्मिक
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