आशिक़
जब गुजरता है प्रेमिका की गली से
निहारता है एकटक
प्रेमिका के घर की खिड़कियों की ओर
दर्शन करना चाहता है प्रेमिका का
जिस तरह एक भक्त व्याकुल रहता है
ईश्वर की मूर्ति की एक झलक देखने ख़ातिर
ठीक उसी तरह आशिक़ भी
व्याकुल रहता है प्रेमिका की एक झलक
प्राप्त करने ख़ातिर।।
सुख सुविधाओं से परिपूर्ण
होने के बावजूद भी
वो सुकून नहीं मिलता है
आशिक़ के मन को
जो सुकून प्राप्त करता है वह
प्रेमिका के सम्मुख बैठकर
प्रेमिका से दिल की बातें कर।।
ज़िंदगी से चाह नहीं होती है अधिक
एक आदर्श आशिक़ को
एक आदर्श आशिक़ की चाहत होती है
बस इतनी ही
प्रेमिका का दिल, मन
समझ जाए आशिक़ के मन की बात
दिल की बात।।
आशिक़
अपना पूरा जीवन
चाहता है गुजारना
प्रेमिका के संग
आशिक़
प्रेमिका के तन पर
जबर्दस्ती अधिकार कायम
नहीं करना चाहता है
वह चाहता है
बस प्रेमिका को ख़ुशी अर्पित करना
प्रेमिका के इर्दगिर्द
दुख,दर्द नहीं भटकने देना।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
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