ईश्वर ने इंसान को कुछ नहीं बल्कि बहुत कुछ उपहार स्वरूप देकर भेजा है। ईश्वर ने सोचने, समझने व कुछ बेहतर करने के लिए इंसान को मस्तिष्क दी है। हाथों से किसी बेसहारे की मदद करने हेतु दो हाथ दिए हैं। इंसान सर्वदा सत्य पथ पर कदम रख सके इसलिए ईश्वर ने उपहार स्वरूप दो पाँव दिए हैं। अपने कर्म से वचन से मानवता की रक्षा व अपनी एक अलग पहचान दुनिया के समक्ष इंसान प्रस्तुत कर सके इसलिए ईश्वर ने इंसान की संरचना की है।
इंसान आज अच्छा कर्म करने की बजाय, हर दिन कुकृत्य कर रहा है। मानवता को शर्मसार कर रहा है इंसान आज अपने कर्म से। हर दिन इंसान इंसानियत की परिभाषा के उलट हर कार्य कर रहा है। इसी का परिणाम है कि आज हर जगह कुछ-न-कुछ अनहोनी घटित हो रही है। कुछ अनहोनी हो जाने के पश्चात इंसान ईश्वर पर दोषारोपण करता है, यह नहीं सोचता है कि आज हम क्या कर रहे हैं।
कर्म का फल एक दिन अवश्य मिलता है। कुकृत्य कर इंसान बेशक अथाह धन अर्जित कर ले, भले आत्मसंतुष्टि मिल जाती है उसे अपने कार्य से। परंतु कुकृत्य करने का फल एक दिन अवश्य मिलता है। जब कर्म का फल मिलता है तो दर्द की अनुभूति होती है। तब ईश्वर का सुमिरन करना प्रारंभ कर देता है इंसान। कर्म अच्छा हो तो फल निश्चित ही अच्छा मिलता है यदि कर्म बुरा किया जाए तो उसका फल भी भयावह मिलता है यह स्मरण रखना चाहिए इंसानों को।
अपनी गलतियों का भान होना चाहिए इंसानों को। जीवन के मूल ध्येय को समझना चाहिए इंसानों को। किसी भी निर्धन, असहाय इंसान व बेजुबान जानवर के अहित के विषय में कभी भी सोचना नहीं चाहिए। परोपकार का कार्य न कर सके तो कोई बात नहीं, पर किसी के लिए दुःख की वजह नहीं बनना चाहिए। यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि ईश्वर बेशक अदृश्य हैं पर सबकुछ देख रहे हैं।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत प्रेणनासप्रद संदेश
@Thanks Babita di
सही कहा, इंसान ने अपने कर्मो को नही बदला तो प्रकति अपना बदला लेकर रहेगी।
बेहतरीन ।
Motivational
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