पिता को समर्पित द्वितीय दिवस

सुपर हीरो को समर्पित चंद शब्द

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 09 Feb, 2022 | 1 min read
Father's love Sacrifice of father Pain of poor father Love for Father

Day-02


पिता को समर्पित आर्टिकल का आज दूसरा दिन, पर मेरे अनुसार पिता के त्याग, पिता के प्रति प्रेम व्यक्त करने के लिए लाख दिन भी कम है, फिर भी आज पुनः मैं अपने पिता से जुड़ी कुछ बातें आप सबों से साझा अवश्य करना चाहूंगा, उनका मेरे प्रति व मेरा उनका प्रति जो प्रेम था उसकी झलक आज आपको यहां पढ़ने को मिलेगी।


घर की आर्थिक स्थिति प्रतिकूल रहती ही थी, घर खर्च बमुश्किल से चलती थी। सो पापा! अपनी साइकिल से ही गाँव में घर-घर जाकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे। कुछ अभिभावक जो शिक्षा व शिक्षक की कद्र करते थे वह महीने के अंत में जो भी फी होती थी अदा कर देते थे, व कुछ महीने लग जाने के बाद भी पैसे नहीं देते थे। सो उन्हें काफ़ी परेशानी होती थी, परिवार में पाँच सदस्य थे, हम तीनों भाईयों की पढ़ाई भी उन्होंने रुकने नहीं दिया भले ही उन्हें दिन भर पढ़ाना पड़ता था। बेशक कम फी पर ही। ये स्थिति मैंने अपनी आँखों से देखी थी। 


जब पापा होम ट्यूशन पढ़ाकर घर लौटते थे व रात का भोजन ग्रहण कर बिछावन पर सोने जाते थे ,तो मुझे अपने पास बुलाकर कहते थे कि बेटे! जरा पाँव दबा दे, कल तुम्हें पढ़ाने जाने से पहले १० रुपये दे दूँगा। फौरन मैं दोनों हाथों से प्रेम से पापा के दोनों पाँव दबाने में मशगूल हो जाता था। पाँव दबाते-दबाते पापा को नींद आ जाती थी फिर मैं भी सोने चला जाता था। और कभी-कभी थोड़े ही देर में पापा कहते थे कि रहने दे बेटे तुमने पाँव दबाया थोड़े देर ही सही पर अब सारा दर्द खत्म हो चुका है। फिर भी मैं पाँव दबाता रहता था, मुझे लगता था कि यदि मैं कम देर ही पाँव दबाऊंगा तो हो सकता है कि पापा कल मुझे जो पैसे देने की बात कहें हैं वो सत्य न हो। पर ऐसा नहीं था। पापा ने सदैव हम भाईयों की ख़ुशी को प्रथम स्थान पर रखा था, बेशक ख़ुद की ख्वाहिश को वह प्रतिदिन दफ़न करते थे। आज जब ये बातें मैं सोचता हूँ तो आँखों से आँसू रोके नहीं रुकते हैं। 


काश! वो दिन फिर से लौट आता, काश! ईश्वर अपना निर्णय बदलकर मेरे पिता को मेरे पास भेज देते। फिर से मुझे उनके पाँव को प्रेम से दबाने का अवसर मिल पाता। पर शायद ये मेरी ख्वाहिश ताउम्र अधूरी ही रहेगी। क्योंकि जाने वाले चले तो जाते हैं पर लौटकर नहीं आते। पर मैं हमेशा ही यह महसूस करता हूँ विकट परिस्थिति में भी कि पापा मेरे बीच ही मौजूद हैं। मेरे इर्दगिर्द ही हैं। यही सोचकर मैं ख़ुद को संभालने की भरसक कोशिश करता हूँ व अपने परिवार वालों को भी।


पिता ने जो त्याग मेरे लिए किया परिवार के बाकी सदस्यों के लिए उसे शब्दों में वर्णित कर पाने में कलम की कद शायद छोटी प्रतीत हो जाएगी। मैं कितना भी लिखूं उनके विषय में फिर भी यूं लगेगा कि कुछ शेष रह गया।


क्रमशः....



निष्कर्ष- पिता की उपस्थिति घर में हो तब तक उन्हें इतना प्रेम कीजिए कि प्रेम को भी आपके ऊपर गर्व हो। ईश्वर भी आपसे ख़ुश हों, इसलिए प्राणदाता पिता की ख़ुशी के लिए हर संभव प्रयत्न कीजिए। जब भी पिता मायूस अथवा दुखी हों उनके चेहरे पर ख़ुशी लाने के लिए सार्थक प्रयत्न कीजिए।


धन्यवाद!


©कुमार संदीप

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Kumar Sandeep

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Student · 2 years ago last edited 2 years ago

    We always grateful to u dear brother,yr word always touches heart, Respect for ur talent and emotions that6u learned by yr parents 👌👌👌🙏🙏🙏

  • Student · 2 years ago last edited 2 years ago

    WE RESPECT U AND YR TALENT AND PROUD ON U

  • Kumar Sandeep · 2 years ago last edited 2 years ago

    धन्यवाद आ०🙏🙏

  • Ektakocharrelan · 2 years ago last edited 2 years ago

    Very touching 🙏🏻💐

  • Kumar Sandeep · 2 years ago last edited 2 years ago

    🙏🙏

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