"सुनती हो, भोजपुरिया की माँ! देखो न बाढ़ का पानी अब अपने घर से चंद कदम ही दूर है। अब हमें यहां से दूर कहीं चले जाना चाहिए।" गंभीर चिंता जाहिर करते हुए दीनानाथ ने यह बात अपनी पत्नी से कहा। पत्नी ने कहा, "भला हमलोग जाएं भी तो कहाँ जाएं? खाने के लिए अब तो कुछ भी है भी नहीं घर में। और न ही दूर-दूर तक कोई राश्ता सूझ रहा है। कोई मदद के लिए हाथ भी आगे नहीं बढ़ा रहा है चाहे सरकार हो या कोई सुखी संपन्न परिवार। जाने दीजिए! ईश्वर की यही मर्जी है कि हम दीन दुखियारे हमेशा दुख झेलें तो यही सही। पत्नी की इस बात को सुनकर दीनानाथ आँखों से निकलने वाले आंसुओं को धोती से पोछने लगा।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
भावार्थ सहित । सुन्दर वर्णन।
धन्यवाद आपका भाई जी
भावुक👌
धन्यवाद दी
सही लिखा है 👏👏👏👏
बहुत सुन्दर लिखा भाई
धन्यवाद माता श्री
धन्यवाद मैम
गागर में सागर
धन्यवाद दी
Please Login or Create a free account to comment.