ज़िंदगी में पहली बार
हाँ,पहली बार देखा मैंने
कि पूरी दुनिया है हैरान और परेशान
हर चेहरे पर मुखौटे के रुप में है लगा मास्क
गरीबों की टूट रही है अब ज़िंदगी से आश!!
ज़िंदगी में पहली बार
हाँ,देखा मैंने कि चहुंओर है पसरा सन्नाटा
चहल-पहल का नामोनिशान नहीं है कहीं
ज़िंदगी गुजर रही है किसी तरह सभी की
सभी के हृदय में है एक अज़ब कोलाहल!!
ज़िंदगी में पहली बार
हाँ,पहली बार मैंने महसूस किया कि
ज़िंदगी सचमुच है बेहद अनमोल
प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना है सर्वथा अनुचित
हाँ,है रब से यही दुआ कि दूर हो जाए दुनिया से दुख की ये घड़ी!!
जिंदगी में पहली बार
हाँ,पहली बार जी भर रोते देखा है मैंने
दीन दुखियों को असहाय परिवारों को
भूख से तड़पते देखा है मैंने जो कमाते हैं हर रोज
तन तपाते हैं जो कड़कती धूप में उन्हें बहुत रोते देखा है!!
ज़िंदगी में पहली बार
हाँ,पहली बार देखा है मैंने
सभी के चेहरे पर है मायूसी और उदासी
ख़ुशी और रौनक हो गई है कहीं गुम
हाँ,पहली बार देखा मैंने रास्ते को उदास होते।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
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