प्रतियोगिता हेतु मैंने रिश्तों की डोर विषय का चयन किया। मुझे इस विषय पर लिखना भी अच्छा लग रहा है। मैं इस टॉपिक पर लिखने में कहाँ तक सफल हुआ हूँ, यह तो आपके ऊपर निर्भर है। आपकी टिप्पणियाँ व विचार ही कुछ लिखने के लिए मुझे प्रेरित करती है। आज रिश्तों की डोर टॉपिक के अंतर्गत बताने जा रहा हूँ कि किस प्रकार घर की बेटी रिश्तों की डोर को मजबूत करती है। जी हाँ, बेटियाँ सचमुच ही रिश्तों में दूरियों को कम कर नजदीकियां बढ़ातीं हैं।
परिवार के हर सदस्यों का रखती है ख़्याल बेटी-एक आदर्श बेटी परिवार के हर सदस्यों का पूरा रखती है। पापा की दवाई माँ के हर काम में हाथ बँटाना,भाईयों के ऊपर स्नेह की बारिश करना इन सभी कार्यों का निर्वहन बखूबी करतीं हैं बेटियाँ।जब कभी भाई पिता से ऊंची आवाज़ में बात करता है, तो उस वक्त उसकी बहन समझाती है उसे कि पिता जी के साथ इस प्रकार का बर्ताव सही नहीं। यानी हर संभव प्रयास करती है बेटी कि परिवार में कभी भी कलह न हो और रिश्तों की डोर हमेशा ही मजबूत रहे।
मायके की याद तो आती है पर ससुराल में ही सबों से घुलमिल जाती है - अपने घर से दूर रहना भला कौन चाहता है?कौन माता-पिता व अपने सगे संबंधियों से दूर रहना चाहेगा। लेकिन, एक बेटी अपने घर से दूर ससुराल जाकर वहां अपने ससुर के चेहरे में अपने पिता का चेहरा देखती है।और, सासुमाँ के चेहरे में अपनी माँ का चेहरा देखती है। जिस तरह अपने घर में परिवार के हर सदस्यों का पूरा ख़्याल रखती है उसी तरह वहां भी सबों का पूरा ख़्याल रखती है। ससुराल में भी रिश्तों की डोर को मजबूत करती हैं बेटियाँ।
बेटियों के विषय में जितना भी लिखा जाए कम है। उन्नति व प्रगति करने के साथ-साथ बेटियाँ परिवार में प्रेम सर्वदा ही न्योछावर करतीं हैं एवं रिश्तों की डोर में मजबूती भी लाती है।
धन्यवाद!
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
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