मैं हवा हूँ

हवा पर लिखित एक उत्कृष्ट सृजन

Originally published in hi
Reactions 0
1508
Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 11 Apr, 2020 | 1 min read

कभी मंद-मंद गति में मैं बहकर

अपने होने का एहसास दिलाती हूँ

कभी तीव्र गति में बहकर

सबकुछ कर देती हूँ तहस-नहस

हाँ,मैं हवा हूँ मेरे बिना

जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं सभी।।

एक पल के लिए भी यदि

मैं हो जाऊँ सभी से ओझल

सभी हो जाएंगे हैरान और परेशान

मेरे बिन सब कैसे जी पाएंगे

हाँ,मैं हवा हूँ मैं हूँ तभी तो

इस सृष्टि का हर प्राणी है जीवित।।

मेरी बात है सचमुच बहुत निराली

चक्कर लगाती हूँ चहुंओर

करती हूँ भ्रमण मैं संपूर्ण जगत का

जेठ की दुपहरी में असहाय के

तपते तन को ठंडक का एहसास दिलाती हूँ

हाँ,मैं हवा हूँ मैं हर जगह हूँ।।

वृक्ष करते हैं नृत्य जब तक हूँ मैं

साँसें हैं सभी की जब तक हूँ मैं

मेरे बिना सचमुच है सबकुछ अधुरा

हाँ,मैं हवा हूँ मैं हर जगह हूँ।।

©कुमार संदीप

मौलिक,स्वरचित

0 likes

Published By

Kumar Sandeep

Kumar_Sandeep

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.