माँ! तू कैसे कर लेती है सबकुछ
सूर्योदय होने से पूर्व उठ जाती है
दिनभर करती है घर का हर काम
इक पल भी न करती है आराम
सभी सो जाते हैं घर में जब
तब तू सोती है,हाँ सब सो जाते हैं तब तू सोती है।।
माँ! तेरी परिभाषा कर सकूं व्यक्त शब्दों में
इतनी मेरी कलम में ताकत नहीं है माँ
पुत्र के प्रति तेरे प्रेम को परिभाषित करना
नहीं है किसी कलमकार से संभव
तू तो निःस्वार्थ भाव से करती है प्रेम
परिवार की ख़ुशी चाहती है तू हर पल।।
माँ! जब तू रुठ जाती है हमसे कभी
कुछ पल के लिए तू नहीं बोलती है कुछ भी
पर कुछ पल के पश्चात ही तू
कलेजे से लगा लेती है अपने आँखों के तारे को
हाँ माँ माफ कर देती है तू हमारी गलतियों को
ईश्वर से तू हर पल बच्चों की सलामती की दुआ करती है।
माँ! परिवार के प्रति तू करती है
अपना सर्वस्व समर्पित हर पल
संतान के ऊपर न आए कभी भी कोई संकट
इसलिए तू करती है प्रार्थना ईश्वर से हर पल
अपने हिस्से की हर ख़ुशी तू बच्चों को देती है
हाँ माँ,तुम-सा इस जहां में कोई नहीं है।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित
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