माँ!
हाँ माँ, तेरी चाहत रहती है बस इतनी कि
संतान ख़ुश रहे हमेशा हर घड़ी, हर पल
तू नहीं देखना चाहती है कभी भी
अपने बच्चों को मायूस,परेशान व हैरान।।
माँ!
हाँ माँ, आजीवन सर्वस्व समर्पित करती है तू
बच्चों की ख़ुशी के लिए सबकुछ करती है तू
तू नहीं देखना चाहती है संतान के ऊपर कष्ट
नहीं चाहती है तू कि बच्चे रहे मायूस, परेशान।।
माँ!
हाँ माँ, संकट जब कभी आ जाती है बच्चों के ऊपर
तू हो जाती है उस पल बहुत हैरान,परेशान
चाहती है तू कि बेटे के हिस्से का हर गम हो मेरे हिस्से
इतना त्याग,समर्पण,प्रेम तेरे सिवा और कौन कर सकता है।।
माँ!
हाँ माँ, तेरी अच्छाई व्यक्त कर सकूं मैं अपनी कलम से
इतनी ताकत,सामर्थ्य,शक्ति मेरी कलम में है ही नहीं
हाँ तेरी महिमा का बखान रचनाओं के माध्यम से
व्यक्त कर पाना नहीं है संभव किसी भी कलमकार से।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
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