माता-पिता की सेवा करना हम पुत्रों का कर्तव्य है।माता-पाता निःस्वार्थ भाव से बच्चों की देखभाल और पालन पोषण करते हैं।कोई भी कसर नहीं छोड़ते हैं बच्चों की परवरिश करने में। ख़ुद की ख़ुशी की परवाह नहीं करते हैं बच्चों के चेहरे पर सदैव मुस्कान रहे इसलिए दिन-रात परेशान रहते हैं।कड़ी मेहनत करते हैं ताकि बच्चों का भविष्य सुनहरा हो।
बच्चों के ऊपर कभी भी किसी भी तरह की कोई भी बाधाएं न आएं इसलिए माता-पिता अपना सर्वस्व समर्पित करते हैं।अंतिम साँस तक माता-पिता का अपनी संतान के प्रति प्रेम कम नहीं होता है।ईश्वर ने एक तोहफे के रुप में हमें माता-पिता हमारे जीवन में दिया है।संतान की भी जिम्मेदारी बनती है कि अपने माता-पिता का पूरा ख्याल रखे।उन्हें कभी भी हानि न पहुंचाए।व हर संभव प्रयास करना चाहिए कि हमारी वजह से माता-पिता को कोई भी तकलीफ़ न हो।
बाल्यवस्था में हम चलने और बोलने में असमर्थ होते हैं।उस वक्त से माता-पिता हमारी देखभाल करते हैं।वृद्धावस्था में माता-पिता को भी हमारे सहारे की जरुरत होती है।हमें भी अंतिम साँस तक उनकी देखरेख और सेवा करनी चाहिए।यह एक पुत्र धर्म है।जिस तरह एक माता-पिता बिना किसी स्वार्थ की भावना के हमारी देखभाल करते हैं ठीक उसी तरह हमें भी माता-पिता की सेवा करना चाहिए।
साँसों का क्या भरोसा है?न जाने कौन-सा पल आखिरी हो।माता-पिता को खोकर बहुत ही तकलीफ़ होती है।इस बात को महसूस करना हो तो कभी उस बेटे के पास उसका हालचाल पूछिये जिसने असमय ही अपने पिता या माँ को खोया हो।इसलिए जब तक साँस है।अपनी माँ और अपने पिता से जी भर प्रेम कीजिए व उनको ख़ुश रखने का हर संभव प्रयास कीजिए।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
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