आज मजदूर दिवस है।समझ नहीं आ रहा है कि मजदूर दिवस की मजदूरों को बधाई और शुभकामनाएं दूं भी तो किस तरह दूं।आज झेल रहें मजदूर असहनीय दर्द और तकलीफ।उनके जीवन में इस वक्त मौजूद दर्द और तकलीफ को महसूस करने मात्र हृदय द्रवित हो जाता है मन उदास हो जाता है।सचमुच आज जो दर्द और कठिनाई निर्धन और असहाय परिवार झेल रहें हैं वो दर्द असहनीय और अकथनीय है।
दिनभर तपती धूप में तन तपाकर कपकपाती ठंड में भी कपकपाते हाथों से काम करके दो वक्त की रोटी किसी तरह जुटाते थे मजदूर।आज वही मजदूर मजबूर हैं।अपने घरों में भूख से बिलख रहें,तड़प रहें हैं हैं इस महामारी के दौर में।वक्त भी बड़ा बेरहम है आज उसने असहनीय दर्द दिया है सभी के हिस्से में।
निर्धन परिवार तो हर दिन गरीबी की मार सहन करते ही हैं।और आज ऊपर से इस महामारी की मार।कहीं-न-कहीं आज इस बुरे वक्त के जिम्मेदार इस धरा पर मौजूद कुछ पापी और निर्दयी लोग हैं जो हर रोज़ कुकृत्य कर प्रकृति के संग और कुछ भले इंसान के संग खिलवाड़ करते थे।उन पापियों की सजा आज हर अच्छा इंसान भी भुगत रहा है।मजदूर जी रहें हैं आज किसी तरह।साँसें चल रही है किसी तरह उनकी न जाने किस पल साँसें सदा के लिए थम जाए।भला गरीबी और प्रतिकूल समय की मार कब तक सहन करेंगे निर्धन।
इंसानियत के नाते हम सभी को आज यथासंभव कुछ सार्थक प्रयास करना चाहिए निर्धन और असहाय परिवार के लिए।मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाने की ज़रूरत है आज।उनके जीवन में आए आज इस कष्टप्रद अंधकार को दूर करने के लिए हमें उन सभी असहायों की मदद करने की ज़रूरत है।यही उनके लिए आज इस वक्त सबसे बड़ा उपहार होगा।हम ईश्वर से आज यही प्रार्थना करते हैं कि हालात यथाशीघ्र सामान्य हो जाए सभी जगह की और मिट जाए सदा के लिए निर्धन और असहाय परिवार के जीवन से दुःख और दर्द।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
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