महामारी का नाम सुनने से ही गरीब की रुह काँप उठती है। क्योंकि इतिहास गवाह है, जब-जब महामारी रौद्र रुप धारण करती है तब-तब एक गरीब परिवार को बेइंतहा दर्द देती है। गरीब परिवार के लिए जीवन जीना कष्टदायक हो जाता है। दिन दर्द में गुजरता है और रात रो रोकर गुजरती है।
सुखी-संपन्न लोगों की जीवनशैली देखें- महामारी के दौरान एक सुखी-संपन्न और आर्थिक रुप से सुदृढ़ परिवार को महामारी अत्यधिक तो नहीं सताती है। पर हाँ, तनिक तकलीफ जरूर देती है। उनके लिए इस तकलीफ से उबरना आसान होता है। क्योंकि हर तरह से उनमें इस तकलीफ से उबरने की सामथ्र्य होती है।
बेसहारों का जीवन करती है बर्बाद- निर्दयी गरीबी तो सामान्य दिनों में एक गरीब को जीभर कर सताती ही है। महामारी के दौर में महामारी भी बेसहारों को सताने का कोई कसर नहीं छोड़ती है। मन भर नुकसान पहुंचाती है। जब एक गरीब हार जाता है, महामारी की मार से तो असमय उस गरीब को ईश्वर के पास जाना पड़ता है। अर्थात, उस गरीब को जीवन का त्याग बेवक्त ही करना पड़ता है।
ईश्वर लेते हैं सब्र की परीक्षा- महामारी के दौरान ईश्वर भी इंसानों के सब्र और साहस की परीक्षा लेते हैं। ईश्वर देखते हैं की संकट की घड़ी में इंसानों के अंदर खुद पर विश्वास कितना है। हमें विपत्तिकाल में आत्मविश्वास खोना नहीं चाहिए। ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए। ईश्वर कहीं-न-कहीं संकट से सबक देना चाहते हैं मनुष्य को। हमें हर हाल में खोनी नहीं चाहिए हिम्मत।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित
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