शिनवाज और समीर अपने अब्बू से बेइंतहा प्रेम करते थे। और इधर उसके अब्बू भी शिनवाज और समीर से बहुत प्रेम करते थे। ईद की तैयारी में उसके अब्बू कोई कसर नहीं छोड़ते थे। दोनों बेटों की ख़ुशी का पूरा ख़्याल रखते थे। आज ईद का अंतिम रोजा था,और कल ईद। इस बार भी अब्बू ने दोनों बेटों के लिए नए कपड़े खरीद कर लाए थे। पर ख़ुद के लिए इस बार भी नहीं। समीर था तो सबसे छोटा पर उसमें समझ बहुत थी। उसने अपने बड़े भाईजान शिनवाज से कहा " भईया देखिए न! अब्बू इस बार फिर से ख़ुद के लिए नए कपड़े नहीं लाए हैं। क्यों न हम? अब्बू के लिए ख़ुद ही नए कपड़े खरीद कर ले आएं। पर पैसे तो कम ही मेरे गुल्लक में भईया!" शिनवाज ने कहा " कोई बात नहीं प्यारे भाई, मेरे पास भी कुछ पैसे हैं चलो हम अपनी पसंद से उनके लिए बाजार से एक अच्छा-सा कपड़ा खरीदकर लाते हैं। और हाँ, एक योजना और मेरे मन में है। इस बार हम ईद कुछ अलग तरह से मनाएंगे।
शिनवाज और समीर ने ईद से एक दिन पूर्व ही अपने अब्बू के लिए बाजार से कपड़े खरीद कर लाया। आज ईद थी। सुबह-सुबह ही शिनवाज ने अपने अब्बू के हाथों में नए कपड़े थमाते हुए कहा " अब्बू आपको आज यही कपड़ा पहनना है। मैंने और समीर ने अपनी पसंद से आपके लिए लाया है।" शिनवाज की इस बात को सुन उसके अब्बू की आँखें नम हो गई। उसने अपने दोनों बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा " शिनवाज,समीर तू अपने अब्बू से इतना प्रेम करता है! अब्बू के लिए तूने अपने जमा पैसे खर्च कर दिए। बेटे मुझे गर्व है कि तू मेरा बेटा है।"
शिनवाज ने कहा "अब्बू अब जल्दी-से कपड़े पहन लीजिए और चलिए पड़ोस के एक गाँव में।" अब्बू ने कहा " पड़ोस के गाँव में क्यूं बेटा?" शिनवाज ने कहा " अब्बू कल शाम को बाजार से आने के दौरान कुछ निर्धन बच्चों को भूख से बिलखते देखा था मैंने। मेरा दिल पसीज गया उस वक्त। अब्बू मैं चाहता हूँ कि हम इस बार ईद हम उनके साथ मनाएं। एक दिन ही सही उन्हें हम अपने हिस्से की कुछ ख़ुशियाँ तो दे सकेंगे।" इस बात को सुन उसके अब्बू का सिना गर्व से और ऊंचा हो गया।
जैसे-ही सेवईयां और अन्य मिष्ठान लेकर समीर,शिनवाज और उसके अब्बू वहां पहुंचे सभी निर्धन बच्चों के चेहरे पर मुस्कान छा गई। ईद दोनों भाईयों ने उन बच्चों के साथ मनाया उनके परिवारवालों के साथ मनाया। वहीं खड़े एक बुजुर्ग ने दोनों भाईयों को अपने पास बुलाकर कहा " बेटे तुम दोनों बड़े ही संस्कारी हो। धर्म के नाम पर लड़ते हैं जो उनलोगों को तुमसे सीख लेनी चाहिए। तुम चाहते तो ईद अपने घर पर भी हर्षोल्लास से मना सकते थे पर तुमने इन दीन दुखियों असहाय परिवार के साथ मनाने का मन बनाया। यह बहुत बड़ी बात है। खूब तरक्की करो बेटे। रब तुम्हें ढ़ेर सारी ख़ुशियाँ दे।" बुजुर्ग के आशीर्वाद पाने के बाद शिनवाज और समीर का मन प्रशन्न हो गया और इधर उसके अब्बू की आँखों में ख़ुशी के आंसू साफ-साफ दिखाई देने लगे।
शिनवाज के अब्बू ने कहा " बेटे इससे पहले भी कई बार ईद मनाया पर इस बार की ईद जितनी ख़ुशी कभी न मिली। हर बार इसी तरह ईद मनाऊंगा। तुम दोनों ने बहुत बड़ी सीख दी है। ख़ुशियों के पर्व को हमें मिलजुलकर मनाना चाहिए पर्व की ख़ुशी दोगुनी हो जाती है। अल्लाह से बस इतनी ही दुआ है कि तुम्हारे जीवन में सदैव ख़ुशियों का डेरा रहे बेटे।" वापस आकर शिनवाज और समीर ने अम्मी को सारा वृतांत कहा। उसकी अम्मी बहुत ख़ुश हुई। और अम्मी ने अपने दोनों जिगर के टुकड़े को जिगर से लगाकर ढ़ेर सारा आशीष दिया।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
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