Jyoti Mishra
09 Feb, 2022
जाने भी दो यारों
कभी-कभी उलझे धागों को सुलझाना चाहती हूंँ पर सुलझा नहीं पाती हूंँ यह सोच कर कि कहीं धागों को सुलझाने की कोशिश में धागा टूट ही ना जाए
इस डर से उसे ज्यों का त्यों छोड़ देती हूं |
Paperwiff
by Jyotimishra
09 Feb, 2022
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