मैं खड़ी हूं बाजार में

यह केवल कविता नहीं है, यह हर महिला द्वारा गहराई से महसूस किया जाता है।

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PRANITA
PRANITA 08 Apr, 2021 | 0 mins read
#womenpoetry #women


मैं खड़ी हूं बाजार में खुदको तौलने,

कभी रिश्तों में,कभी मर्यादाओं में,

कभी तेरे प्यार की आकांक्षाओं में ।


कि तुम यहां मेरे रंग रूप को देखते हो।

क्या मोल रह गया है मेरे

और कौड़ियों के भावो में।

कभी बत्तचलन तो कभी बाँझ पुकारा जाता है,

यही इतिहास युगो युगो से चला आता है।

मैं खड़ी हूं बाजार में खुदको तौलने….


कभी जुए में हारा जाता है मुझे,

कभी दहेज की आग में तो कभी,

तेरे इश्क के तेजाब में झोंकी जाती हूं मैं।

और फिर अबला कहकर समाज की इज्जत

बचाने के लिए रोकी जाती हूं मैं।

मैं खड़ी हूं बाजार में खुदको तौलने….


मैं खड़ी हूं बाजार में खुदको तौलने,

कभी रिश्तों में कभी मर्यादाओं में,

कभी तेरे प्यार की आकांक्षाओं में ।

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PRANITA

Jiya

Comments

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  • Charu Chauhan · 4 years ago last edited 4 years ago

    सच्चाई को दर्शाती कविता ?

  • Shubhangani Sharma · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत खूब

  • Deepali sanotia · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत सुन्दर रचना है

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    उत्कृष्ट?

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