दर्शकों की उम्मीदे, करते तार तार
क्या ये चाल तुम्हारी, नई चेतना लायेगा।
पछपाती बनके, जो दृश्य दिखाया है
सच है कि नही, ये कौन बताएगा।
पूरे मामले को, आधा जो बताया है
बढ़ चढ़ कर अब, ये और उकसाएगा।
नही कोई सूत्र, ना कोई सबूत है
फिर भी , अनर्गल बातें बतलायेगा।
बिक जाती है जो, मीडिया की आत्मा
कौन है जो फिर, सत्य सामने लाएगा।
अस्तित्व तुम्हारा जनता के, प्रेम की उधारी है
कुचल के नींव भरोसे का, कौन तमंगा पायेगा
रहो ना डूबे शेख़ी में, कुछ तो करो शर्म अब तो
देश के नव पीढ़ी को, डगर कौन दिखलायेगा
वक़्त के रहते सुधार लाओ, नही गिरोगे औंधे मुंह
जो शिछित युवा देश का, एक हुँकार लगाएगा।
पटल कोई भी सामाचार का, रहा नहीं अब पावन है
आपा-धापी और खींचा-तानी से, बस टी आर पी बढ़ाएगा।
थकते नही हो शब्दों के, गोलमाल से क्यों प्यारे
बिखरेंगी इज्जत सरे आम तो, कौन लाज बचाने आएगा।
©इंदू इंशैल
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
संदेशपरक
सुंंदर रचना
Bahut achha likha.
Very good 💐💐
Thank you sandeep jee
Thank you archana jee
Thank you sonia jee
Thank you neha
very nice
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