सीमा कविता लिखने की शौकीन थी। तो जब समय मिलता डायरी के पन्नो पर अपने मन को उतारती रहती । सीमा निजी जिन्दगी में भी काफी निर्भय थी। जो सही या गलत लगता, उसके साथ या खिलाफ में जरूर बोलती । धीरे धीरे उसका ये लिखने का शौक उसकी निजी डायरी से निकल कर सोशल मीडिया के पटल पर भी दस्तक देने लगा। लोग जी भर कर सीमा की सोच, वाकपटुता और दूरदर्शिता की तारीफ करते नही थकते।
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अभी कुछ दिन पहले ही सीमा ने मीडिया के पछपाती व्यवहार के बारे में, एक कविता लिखी जो काफी लोगो ने जम के सराहा। बहुत सारे तारीफ के पुलिंदों के बीच एक पुराने मित्र का भी मैसेज आया।
वाह क्या लिखा है सीमा। तुम तो बहुत अच्छा लिखती हो।काफी दिनों बाद तुम्हारी कविता के माध्यम से, सच्चाई से सरोकार हो रहा है। अच्छा अगली बार पछपाती मीडिया के चरित्र के साथ - साथ कुछ चैनलो का भी नाम उजागर कर देना। मित्र ने छुटकी लेते हुए कहा।
मीना ने भी बिना देरी किये, तपाक से जवाब लिखा।
नही - नही। नही कर सकते वर्ना मुझे खबरों में देश द्रोही घोषित कर दिया जाएगा। मित्र ने पेट पकड़ कर हँसने का इमोजी, मैसेज में अंकित किया और बात वही पे ख़त्म हो गयी।
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क्या वाकई बात वही पे ख़त्म हुई थी।
नही। मेरा मन अब भी उसी बात को लेकर अंतर्मंथन कर रहा था। क्यों मेरे मन के कोने से ये जवाब आया कि अगर में सच बोलूंगी या सच जानते हुए पछपाती समाचार पटलों का नाम उजागर करूँगी तो मुझे देश द्रोही कहा जायेगा।
कुछ तो हमारे देश और समाज में ऐसा ही चल रहा है जो लोगो के अंदर डर पैदा कर रहा है। सच, खुल कर न बोलने का डर।ह म निडर तो है पर हम फिर भी डरे हुए है।शब्दो को नाप-तौल के बारीकी से देख कर लिखते तो हैं फिर भी डर है, कही मुद्दा न बन जाये।
हम स्वतंत्र हैं, सच बोलने के लिए पर सिर्फ कमजोर कड़ी के लिए। हम बिना कटनी छटनी किये मज़बूत, भ्रस्टाचारी , दोगले मापदंडो पे राज करने वालो के।खिलाफ कुछ नही कह सकते।
यही है, आज का स्वतंत्र डर ! जो मुझमें है, आपमें है, और इस पूरे समाज में व्याप्त है।
©इंदू इंशैल
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