वातावरण सुहाना हो ।
भवरों का आना जाना हो ।
फूल खिले मनमानी से ,
ऐसा समाँ सुहाना हो ।
वातावरण सुहाना हो---------
प्रकृति के रंगों का,हो बोलबाला।
साफ पानी बन जाये,अमृत का प्याला।
ना हो शोर, ध्वनि का और बहुत
बस पंछी सुनायें,सुरीला गाना।
जो पवन चले, खुशबू लाये
और दूर तक, पथिक के सिर पर छाया हो।
वातावरण सुहाना हो---------
जो प्रकृति, हमको पाल रही है
तो इसका भी, कर्ज चुकाना है ।
ना करो गंदगी,रखो साफ
गर धरती पे, स्वर्ग बसाना है ।
पर्वत ,पहाड़ ,पोखर और नदियाँ,
इनका अस्तित्व बचाना है।
जो पर्यावरण ने, अब तक खोया है
वह सब उसको लौटाना है।
बिना करें, अब और दोहन
सृजन का खूब बढ़ावा हो।
वातावरण सुहाना हो--------
©indu inshail
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