अभी कितने होंगे वार,और कितना होगा हाहाकार
बस होती रहेगी दूर तलक, संवादों की बौछार है।
क्या औरत की अस्मिता का, बस इतना ही सम्मान हैं
युग कोई भी रहा पर, होती रही सुता की हार है।
धरती माँ रोई फफ़क फफ़क, जो सरे आम इज्जत उछली
चारो दिशा है क्रंदनमय, ये बेटी की चीत्कार है।
कभी द्रोपदी की लाज बिकी, तो कभी पद्मावती का जौहर
ना बदलेगी प्रवृत्ति राक्षसो की, बस विकल्प बचा संहार हैं।
जब बनेगी दुर्गा हर नारी तो, रौद्र रूप दिखलाएगी
अम्बर भी कॉप उठा जिससे, वो औरत की हुँकार है।
©इंदू इंशैल
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice
Please Login or Create a free account to comment.