पंखा झलते-झलते हाथ पत्थर हो गया। फिर भी विमला का हाथ रुक ही नहीं रहा था। दर्द इतना असहनीय था फिर भी एक बार न सोचा कि 2 मिनट हाथों को आराम दे दे। बस लगातार 1 घंटे से पंखा झलती चली जा रही थी।
इतनी गर्मी में तो, किसी को भी नींद ना आए और अगर इतनी मुश्किल से मेरे बच्चे की नींद लगी है तो वह गर्मी की वजह से मैं उसकी निंद्रा टूटने ना दूंगी, यह सोचकर बीच-बीच में विमला का पंखा झलना और तेज हो जाता। सोचते-सोचते कब वह बचपन की यादों में, विचरण करने लगी, उसे पता ही ना चला।
आज भी साफ-साफ बड़ी अम्मा की आवाज, उसके कानों में सुनाई दे रही थी। जाओ विम्मी जल्दी से जाओ। पापा खाना खा रहे हैं, बिजली नहीं है और गर्मी बहुत है, जाकर पंखा हाँक दो ताकि आराम से खाना खा ले। बड़ी अम्मा सारी बात एक सांस में कह गई। मेरी दादी को सब "बड़ी अम्मा" कहते थे और विम्मी मेरा घर का नाम।
मुझे याद है, मैं पंखा ले कर, अनमने मन से, पापा के बगल में बैठ गई और पंखा झलने लगी। मुश्किल से 3 मिनट बीते होंगे कि मेरे हाथों में दर्द होने लगा। मैंने पंखा चारपाई पर रखते हुए बोला दादी अब और पंखा नहीं हाँक पाऊंगी और वहां से निकल गई। मैंने दूर से देखा कि दादी तपाक से उठी और पंखा ले कर पापा के बगल में बैठ गई।
मैं आश्चर्यचकित हो गई जब एक घंटा बाद वापस लौटी। बड़ी अम्मा अभी भी पंखा हांँके जा रही थी और पास में मेरे छोटे भाई-बहन खाना खा रहे थे। मैंने थोड़ा प्यार और गुस्से में बड़ी अम्मा से पूछा - अरे! आप इतनी देर से पंखा हांँक रहे हो। आपको दर्द नहीं होता क्या? मेरे दर्द की छोड़ और तू भी आ कर खाना खा ले गुड़िया। पता नहीं... बिजली कब तक आएगी? गर्मी बहुत है... मैं पंखा हाँक देती हूँ। बड़ी अम्मा ने दुलार से कहा।
बड़ी अम्मा के समर्पण को देखकर मैं हैरान थी। कहां से लाती है वह इतनी हिम्मत जो उन्हें अपनी सामर्थ्य से भी ज्यादा, कर जाने को प्रेरित करता है। सोचते-सोचते मैंने भी खाना खा लिया और बीच-बीच में बड़ी अम्मा को पंखा झलते हुए, देखती रही। मैं कई घंटों तक सोचती रही कि कहां से वह इतना शक्ति लेकर आती हैं जो उनका, बच्चों के प्रति प्यार और समर्पण में कोई कमी, नहीं होने देता। बड़ी अम्मा अक्सर अपनी सामर्थ्य से ऊपर जाकर घर,परिवार और बच्चों की सेवा में लगी रहती थी।
तभी अचानक तेज से सीलिंग फैन चलने की वजह से विमला की तंद्रा टूटी। हां ! बिजली जो, आ चुकी थी। साथ ही साथ, यह बात भी समझ में आ गई थी कि जमाना नया हो या पुराना, समय अच्छा हो या बुरा, हालात थोड़े बिगड़े हो या बेहतर, मां बच्चो के लिए, स्वयं दर्द महसूस कर सकती है, तकलीफ सह सकती है, पर बच्चे को तकलीफ में नहीं देख सकती। मां की ममता में ही शक्ति है, जिसने मुझे आज एक मिनट के लिए भी, पंखा झलने से रुकने नहीं दिया। ऐसी मां की ममता को सलाम है जो एक मां को, अपने बच्चों के लिए, हर हालात से लड़ जाने की हिम्मत देती हैं और उन्हें सशक्त एवं मजबूत इरादों वाली नारी बनाती हैं। यह सोचते-सोचते विमला के चेहरे और आंखों में चमक आ गई।
©इंदू इंशैल
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
संदेशपरक सृजन
Thank you Sandeep jee
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