मेरी चुप्पी

This poem is about a man who plays so many roles like son, brother and husband too. He tells his wife to understand that do not complain about family instead of loving it.

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indu inshail
indu inshail 19 May, 2020 | 1 min read

मेरी चुप्पी को पहचान लेती

तो बात थी।

आँखों में पसरी मायूसी को जान लेती

तो बात थी।।

मैं तो बस सब की खुशी में खु़श था

रिश्तों को जरा सुलझाने में व्यस्त था

हो जाती है ग़र घर में जो चूक किसी से

और तुम सम्हाल लेती तो बात थी।।।

मेरी चुप्पी को - - -


मैं अकेला ही दुनियादारी

निभाने में व्यस्त था

गिले शिक़वे भूल के अपनों को

हंसाने में व्यस्त था

फिर तुम मिले और सफर में

एक साथी मिल गया

और खुशियों का सिलसिला

बस तुम तक ही रह गया

तुम भी गर मेरे संग इस

घर को सजाती तो बात थी।।।।

मेरी चुप्पी को - - -

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indu inshail

Indu_Inshail

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