जैसे तुम्हारा चेहरा तुम्हारे लिए खास है
वैसे ही मुझे अपनी खूबसूरती पे बेहद ना़ज है।
क्यों घूरती निगाहें मुझसे सवाल करती है
वो तुम्हारा मुझे अछूत की नजर से देखना
मेरी आत्मा को छलनी करती है
क्यों नहीं मिलती मान्यता समाज में बिना शर्त के
क्यों आँखें तुम्हारी सुन्दरता के मापदंड तय करती है
जैसे आसमा में चांद कई दागो के साथ भी नायाब है
वैसे ही मुझे अपनी अहमियत का अहसास है ।।
क्यों नही हँसी रूकती तुम्हारी देख के मुझको
क्यों नही खंगालेते तुम आपनी शख्शियत को
क्यों नही नजर हटती तुम्हारी मेरे अक्स से
हम खुश हैं फिर भी क्यों लगते तुम्हें बेबस से
मेरी बेबाक खिलखिलाहट का अपना अंदाज है
मेरी भी जिस्म के अन्दर एक रूह - ए पाक है।।
जैसे तुम्हारा चेहरा तुम्हारे लिए खास है
वैसे ही मुझे अपनी खूबसूरती पे बेहद नाज है।।।।
©इन्दू इंशैल
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.