"तुम हमारी नाक कटवा दोगी!! क्या ज़िद लगाई हुई है ये, मुझे भी जीने का हक है! मुझे भी जीने का हक है! तुम्हें एक अच्छी ज़िन्दगी मिले, सुख सुविधा मिले इसी भागदौड़ में तो लगे हुए हैं हम। पर तुम चार दिन अपने नुक्कड़ नाटकों के चक्करों में पड़कर मां बाप का जीना दूभर कराके ही मानोगी!" शांति ने अपनी बेटी सौम्या को कहा।
सौम्या अपनी स्नातक पूरी कर चुकी थी और अपने कॉलेज के बच्चों के सोशल वेलफेयर सोसाइटी के कामों में भी सक्रिय रहती थी।
सौम्या के पिता रिटायर होने वाले थे, सौम्या की बुआ रोज भाई को फोन करती कभी कोई रिश्ता लेकर , कभी कोई!!
सौम्या अपनी मास्टर्स पूरी करना चाहती थी पर बुआ के दबाव में आकर मां पापा ने लड़के वालों को बुला ही लिया था।
मां ने सौम्या को कहा -" यूं बुझी सी क्यूं बैठी हो? ये नया सूट पहन लो, बुआ जी लेकर आई हैं। बड़े घर का रिश्ता है, किस्मत खुल जाएगी तुम्हारी। ये फिके रंग के कपड़ों में चेहरे का निखार नहीं दिखेगा।
सौम्या -" बड़े घरवाले कोई चादर खरीदने आ रहे है क्या मां!! जो उनको चटक रंग वाले प्रिंट में लिपटी हुई ही चाहिए। मैं यही कपड़े पहनूंगी। तुम्हारी बात मानकर मैं यूनिवर्सिटी भी नहीं गई। अब मुझे और किसी बात के लिए मजबूर ना करो। मुझे भी हक है अपनी मर्जी से जीने का।
मां बस चेहरे पर ताव लिए बाहर चली गई। बर्तन साफ करती हुई मन ही मन बडबडा रही थी।
आजकल की लड़कियों को घर बैठकर मिल रही रोटी रास नहीं आ रही। खुद बनना है कुछ, खुद करना है, ये सपने ही बाद में रुलाते है।
जब बच्चों वाली हो जाएंगी फिर दुगुनी आफत में फसेगी नौकरी भी , बच्चा भी, घर भी। फिर मां को याद करे।
इतने में मेहमान भी घर पहुंच चुके थे। शांति जी ने सबको बिठाया। सौम्या की बुआ चांदनी और पिता जी बैठ गए ।
बुआ जी सौम्या को बुलाने गई अंदर। सौम्या चाय लेकर बाहर आई।
लड़के की मां ने पूछा -" बेटा !! आगे पढ रही हो, कुछ सोचा है उसके बाद क्या करना है।
सौम्या -" जी मास्टर्स करके नेट के पेपर की तैयारी करूंगी।
लड़के की मां ने चांदनी की तरफ देखकर बोला -" चांदनी जी!!! आप तो बोल रही थीं, बस मास्टर्स ही पूरी करनी है । मैंने तो आपको बता दिया था , खानदानी बिजनेस है बेटे का। किस चीज की कमी नहीं, तो घर की बहू हमे तो घर में ही चाहिए। नौकरी वाली नहीं चाहिए।
सौम्या की बुआ बोली -" अरे बहन जी!! बच्चे हैं, साथ पढ़ने वाले बच्चों की बातों में आकर देख लेते हैं सपने। बस मास्टर्स ही करेगी। बाकी जो आप चाहें। क्यों भाभी !! ठीक कह रही हूं ना!!
शांति जी -" हां जी!! दीदी ठीक कह रही है। वैसे भी आजकल तो अच्छे पढ़े लिखे भी बिना नौकरी के घूम रहे हैं। कौन देगा मास्टर्स करते ही नौकरी। बच्ची है समझ जाएगी दुनियादारी।
सौम्या कुछ बोल भी नहीं पा रही थी और चुप भी नहीं रह पा रही थी। अपने नुक्कड़ नाटकों में सबको समझाती रही , लड़की को भी जीने का हक है। उसके विचार उसे अंदर से कचोट रहे थे, चुप क्यों हो?? बोलो!! या बस थोड़ी सी तालियों और तारीफों के लिए बातें करती हो बड़ी बड़ी।
सौम्या को लग रहा था जैसे सब घूम रहा है। वो सिर पकड़कर बैठ गई। सबको लगा कि पता नहीं क्या हुआ बात करते करते ये क्या हो गया।
लड़के की मां डर गई कहीं लड़की को कोई बीमारी तो नहीं है !
शांति जी सौम्या को अंदर लाई। तब तक चांदनी जी ने उन्हें बातों में लगाए रखा।
सौम्या के पिता जी ने कहा -" मुझे तो लड़का पसंद है, आप अपनी पसंद बता दीजियेगा। फिर आगे जैसा आप कहे वैसा ही कर लेंगे।
लड़के की मां -" ठीक है भाई साहब!! अभी मै जरा अपने पति से भी चर्चा कर लूं। फिर घर जाकर सलाह करके बता दूंगी चांदनी जी को। अब इजाजत दीजिए।
चांदनी -" जी बिल्कुल!! नमस्ते! जल्दी खुशखबरी दीजियेगा।"
सौम्या अभी भी सिर पकड़कर बैठी थी।
पिता जी -" क्या हुआ बेटा??
सौम्या की चुप्पी जवाब दे रही थी , अब तो उसे बोलना ही पड़ा-
" पिताजी!! मैं शादी नहीं करना चाहती।
शांति -" चुप रह तू!! अरे छोड़ो, आप बाहर चलो! मैं आपके लिए खाना लगाती हूं। ये तो पागल हो गई है ।
सौम्या -" ना मां आज नहीं!! पिताजी मैं आपके हाथ जोड़ती हूं , आप ही तो कहते हो इकलौती संतान हूं। फिर मुझे भी तो जीने का हक है। मैं अपनी पढ़ाई पूरी करके, अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं।
चांदनी -" तेरा दिमाग ठीक है!! आजकल पता भी है, अच्छे घर के लड़कों के रिश्ते के लिए कितना पैसा बहाना पड़ता है। ये तो शरीफ लोग ढूंढ कर लाई थी मैं। खुद के जोड़े में विदा करके लेे जाएंगे। क्यों नौकरी के धक्के खाने! एकलौता लड़का है। राज करोगी राज!
शांति -" रहने दो दीदी!! कल से इसके नुक्कड़ नाटक बंद। सिर्फ परीक्षा के लिए यूनिवर्सिटी जाएगी। सारी अक्ल ठिकाने आ जाएगी ,जब टेस्ट पास करने के बाद भी नौकरी के इंतजार में घर बैठी रहेगी। आप चलो मैं खाना लगाती हूं!
सौम्या के पिताजी गुस्से से बाहर चले गए। बुआ भी पिताजी के साथ बैठक में बैठ गई।
सौम्या -" मां! तुम तो मेरी प्यारी मां हो। हमेशा मेरा साथ दिया है। मेरी बात सुनो ना!!
शांति -"" क्या सुनूं?? तुम्हे पता भी है। पिता जी रिटायर हो गए तो जो रिश्ते आ रहे हैं वो भी नहीं आयेंगे। तुम्हारे नुक्कड़ नाटकों में औरत की स्थिति बदल गई होगी, असल जिंदगी में नहीं।
सौम्या -" मां , मैं करूंगी ना नौकरी । मुझे खुद को साबित करने का मौका तो दो। मैं भी जीना चाहती हूं अपनी मर्जी से।
शांति -" इस समाज में जिंदा औरतों के लिए कोई जगह नहीं है। जो जीना सीख जाती हैं, समाज उन्हें मारने की कोशिश तेज करता जाता है। इसलिए बेहतर है जो तुम्हारे मां बाप कह रहे हैं मान लो। वरना , ना खुद जी पाओगी ना हम जी पाएंगे।
सौम्या ने मां को इतनी गहराई से बातें करते हुए कभी नहीं सुना था। अब वो ज़िद्द को छोड़कर मां को सुनना चाहती थी । एक बेटी नहीं , एक स्त्री बनकर।
सौम्या -" मां !! पूरी बात कहो। क्यूं नहीं जी सकती औरत ?? जो औरतें है दुनिया में वो क्या हैं फिर?? ज़िंदा लाश??
शांति -" नहीं !! सभी जिंदा लाश नहीं हैं। बहुत हैं जिन्होंने हम जैसी मीडिल क्लास फैमिली से होते हुए भी अपनी मर्जी से जीना चुना।
पड़ोस की सिमरन दीदी को सब क्या बोलते है ?? भगोड़ी!!
पता है क्यूं?? क्योंंकि अपनी मर्जी से उसने डांसर बनना चुना था।
दुनिया कह तो रही है हम चांद पर पहुंच गए। पर जिनकी पहुंच थी, सिर्फ वो ही पहुंचे है। गली, मोहल्ले में आज भी ऐसे ही लोग है जिन्हें जिंदा औरतें पसंद नहीं।
क्योंंकि वो उनकी पुरुष सत्ता के लिए खतरा हैं।
ज़िंदा औरत को चरित्रहीन, नारीवादी, मुंहफट जाने क्या क्या कहकर पुकारा जाता है।
बस सुशील, सर्वगुण सम्पन्न वो ही है जिसने खुद को मार लिया है। अपने सपनों को, अपनी ख्वाहिशों को , अपने पैशन को, अपनी खुशी को!
सौम्या -" मां !! औरतों को मारता कौन है??
शांति -" उनके अपने ही !! लड़की ने मां बाप की पसंद की शादी कर ली तो अच्छी बेटी, संस्कारी बेटी और जो अपनी पसंद से की तो चरित्रहीन,कुलटा जाने क्या क्या!!
मां बनकर वो नौकरी पर गई, और बच्चे को प्ले स्कूल छोड़ गई तो निष्ठुर, स्वार्थी।
पत्नी बनकर पति की मर्जी से जी तो अच्छी जीवनसाथी , नहीं तो फिर चरित्रहीन!
ऐसे में कोई कब तक जीयेगा?? जब हर कदम पर अपने मरने का सुबूत देना हो??
मैं नहीं चाहती कि तुम हर कदम पर मरो!! इसलिए अच्छा है एक बार ही मर जाओ। कर लो शादी और इज्जत से जाओ अपने घर।
सौम्या के पिता जी ने सब सुन रहे थे, उनकी आंखों में आंसू थे। सौम्या की मां का एक एक शब्द उनके कानों में गूंज रहा था।
सौम्या की मां बहुत अच्छी कथक डांसर थी। सौम्या की दादी की शर्त थी शादी के बाद ना ये डांस करेगी ना नौकरी।
तबसे हर कदम पर बस सौम्या की मां खुद मरकर अपने सारे रिश्तों को ज़िन्दगी देती आई ।
सौम्या के पिता जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा -" शांति!! मुझे माफ़ कर दो। मैं तुम्हें वो दिन तो वापिस नहीं ला सकता। पर ये वादा है मेरी बेटी नहीं मरेगी,
जिएगी और जिंदा औरत बनेगी। मुझे नहीं फिक्र की लोग क्या कहेंगे?? मै पिता हूं , जब तक मैं हूं, अपनी बेटी को जिंदा लाश नहीं बनने दूंगा।
सौम्या ने मां, बाबा को गले लगाया। बुआ जी भी आ गई । अब शांति जी खुश थी, उनके निर्जन मन को जैसे ऑक्सीजिन मिल गई। सौम्या भी जिंदा लाश बनने से बच गई।
*** हम कितना भी कह लें कि ये पुराने जमाने की बातें है, अब ऐसा नहीं होता। हमें रोजगार का आंकड़ा उठाकर देखना होगा कितनी प्रतिशत महिलाएं कामकाजी है।
कितनी प्रतिशत महिलाएं बच्चों के लिए अपनी नौकरी छोड़ देती है? कितने प्रतिशत आत्महत्या करती हैं या ससुराल पक्ष, ऑनर किलिंग में मार दी जाती हैं।
क्यूं घरेलू हिंसा के केस से कोर्ट भरे पड़े है?
जो घर बसे हुए हैं, उनमें कितनी ज़िंदा औरतें हैं जो अपनी मर्जी से जीती हैं? उन सबको जरूरत है सौम्या के पिता जैसे साथ की।
आप भी अपने विचार जरुर बताएं।
आपकी स्नेह प्रार्थी
अनीता भारद्वाज
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