एक दूजे के पूरक

पति पत्नी के रिश्ते को दर्शाती मेरी बुन्देली कहानी

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 29 Jun, 2020 | 1 min read
Relation Bundelkhandi love

नीतू और रमेश खा ऐसे तो ब्याओ के दस साल हो गए ते लेकन रमेश को तन-तन बात पे नीतू पे चिल्लाबो और शक करबो बंद नाइ हतो। नीतू भी एइसे दुखी बनी रात ती। एक दिना रमेश गुस्सन में घर से निकरो लेकन तेज गाड़ी खम्बा से टकरा गई जिसे रमेश बुरी तरह घायल हो गओ।

रमेश के एक्ससिडेंट होबे से नीतू को समझ नाइ आ रओ तो की का करें। रमेश के पाओन में बड़ी चोटे आई हती और ऑपरेशन के बाद भी डॉक्टर ने रमेश खा छः महीना को आराम कई ती। रमेश के संगे संगे अब नीतू खा भी जेइ चिंता हती की अब रमेश चल फिर नाइ सकत न कछु काम कर सकत सो घर को खर्चा कैसे चल है। दो दो बच्चन की स्कूलन की फीस, रमेश की दवा दारू और घर को खर्चा सोच सोच के नीतू परेशान हती। रिश्तेदारन नर भी अपने हाथ खड़े कर दये ते।

घर को खर्चा चलाबे के लाने कछु दिना बाद नीतू घर में बच्चन खा टयूशन पढ़ाउन लगी। जैसे तैसे घर को खर्चा चल रओ तो। नीतू की कड़ी सेवा से रमेश में तीन महीना में ही अच्छओ सुधार होन लगो तो, हल्को वालो प्लास्टर अबे भी चढ़ो तो लेकन धीरे धीरे चलबे फिरबे में ज्यादा परेशानी नाइ होत थी मतलब उ काम पे जाबे लायक हो गओ तो।

इन तीन महीनन में नीतू ने जैसे जिंदगी भर को प्यार दे दओ तो। बा अपने हाथन से खाना खबाती, रोज पाओंन की मालिश करती, डॉक्टर जैसों जैसों बताओ तो उसई एक्सरसाइज करवा देती, रमेश को मो के भाव देखके ही समझ जात ती की उखा का चाने। रमेश कबहु कबहु भावुक होके कान लगत तो कि मैंने कोनऊ पुण्य करे हुईए तबई मोये तुम मिली तो लगत तो कि इसे ज्यादा कोई औरत अपने पति से और का चाह सकत है। सइ में इन दिनन में दोनउ खा एहसास भओ के बे एक दूजे के पूरक हैं और आज ऑफिस जाबे की बेरा रमेश और नीतू दोनऊ की ही आँखन में पानी भर आओ तो लेकन अच्छओ सो एहसास भी भओ। आज भोतउ दिनन बाद नीतू खा खालीपन सो लगो तो सोचो पार्लर ही हो आइये।

पार्लर में अपनी बारी को इंतजार करत नीतू सोच रइ ती की पति पत्नी खा अपनो प्यार महसूस कराबे के लाने का कोनऊ एक्सीडेंट को होबो जरूरी है और जैई सवाल रमेश के मन में चल रओ तो।

कित्तो प्यारो रिश्तो होत है पति पत्नी को। जैसई जैसई समय गुजरत जात है प्यार बढ़तऊ जात है, शरीर की गठन और चेहरे की सुंदरता कोनऊं मायने नाइ रखत। बस नोक झोंक और प्यार कित्तो खूबसूरत एहसास।

स्वरचित, मौलिक

@बबिता कुशवाहा



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