झूठा भ्रम

प्रकृति कल भी सर्वश्रेष्ठ थी और आज भी है।

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 18 Jun, 2020 | 0 mins read

हम हमेशा से ही सोचते थे कि जिंदगी अगर मौका देंगी तो हम ये करेंगे वो करेंगे। कुछ का कहना यह भी होता था कि हम कुछ नही करना चाहते। और आज कुछ न करने का मौका मिल गया है लेकिन अफसोस यह है कि यह मौका सबको एक साथ मिला है। जो हमेशा कहते थे कि जिंदगी थम जाए हम यही रुक जाए आज वे लोग भी यही कह रहे है कि ऐसे शब्द सिर्फ कविताओं और शायरी में ही अच्छे लगते है आज सब यही सोचते है कि जिंदगी फिर चल पड़े तो ही अच्छा है। सबकी जिंदगी के ऊपर मंडराता यह वायरस का ख़तरा जल्दी टल जाए सबकी यही दुआ निकलती है।

लेकिन यह वायरस से लोगो मे भय आया है वही दूसरी और प्रकृति के लिए यह वरदान लेकर आया है। अभी प्रकृति संभल रही है प्रदूषण भी कम हो गया है। पत्तो की सरसराहट औऱ चिडियों की चहचहाहट क्या होती है ये सब जान गए है। हमारा यह गुरुर की हम प्राणियों और प्रकृति से सर्वश्रेष्ठ है चूर हो गया है। हम आज तक सिर्फ अपने मे ही मग्न थे सिर्फ अपने ही बारे में सोचते थे। और अपने ही विकास में हमने प्रकृति को तो बहुत पीछे छोड़ दिया। प्रकृति के फेफड़ों को नुकसान पहुँचा कर आज हम अपने फेफड़ों को बचाने का संघर्ष कर रहे है। बहुत जरूरी है कि अब हम प्रकृति के बारे में भी सोचे। खुद के साथ साथ प्रकृति के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखे। ये कभी न भूलें की प्रकृति कल भी सर्वश्रेष्ठ थी आज भी है और कल भी रहेगी।

आपकी इस विषय मे क्या राय है कंमेंट करके जरुर बताये। धन्यवाद





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