दूजो ब्याह

बुन्देली कहानी (पुर्नविवाह)

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 04 Jun, 2020 | 0 mins read
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"पगला गई है का ते, अबे बेटा खा गुजरे 6 महीना भी न भये ओर ते जश्न मनाबो चाहत"

"अपनी बहू को अकेलोपन अब मोसे नाई देखो जात माई, अब मैने तो सोच लओ है मैं उ को दुसरो ब्याह करवा हो।" सुशीला बोली

"एक बेर और विचार कर ले सुशीला, लोग का कैहे सबरे जंगा बदनामी हो जे है और तेने भी तो अकेले जीवन गुजार दओ है"

"सो का हो गओ मोरे एंगर तो अपने बच्चन को सहारो हतो और अबे तो रीना की उमर ही का है उ के लाने तो पूरी जिंदगी डली है जो अकेलोपन मैंने सहो है मैं उ खा नाई सहने दे दो।" के कर सुशीला जी ने अंगारु पाओ बड़ा दये।

सुशीला को बेटा को कछु महीना पेला एक हादसा में मौत हो गई हती। अबे शादी के दो महीना ही भये ते। अपनी बहू की उदासी उ से देखी नाइ गई और उ ने बहु रीमा को दूसरों ब्याह करवाबे की सोच लई हती। लेकन समाज वाले सुशीला पे ही उंगली उठान लगे ते। बहु को दूसरों ब्याह करवाबे की इजाजत उनके खानदान में नाइ हती। लेकिन सुशीला ने सबखा मना लाओ तो। और आज रीना को दूसरों ब्याह हो हतो। सुशीला जी ने रीना खा अपने घर से बेटी की घाई विदा करो।

मोरी कहानी अच्छी लगे तो लाइक और कॉमेंट करियो। धन्यवाद

स्वरचित

@बबिता कुशवाहा




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Babita Kushwaha

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