हरा भरा फिर बाग होगा
खुशियों का संसार तो होगा
नील गगन के तले
प्रकृति का वरदान तो होगा
नदियों के होंगे राग रसीले
झरनों का फिर शोर तो होगा
ऊँचे होंगे पेड़ घनेरे
ठंडी हवा का झोंका तो होगा
नीली नीली झील में
नील गगन का फिर रूप तो होगा
डाली डाली गुजेंगी चिड़ियों की गूंज
सुर मिलाते पंछियो का फिर राग तो होगा
फूलों पे बिखरे शबनम के मोती
मिट्टी की सौंधी खुशबु का वह इत्र तो होगा
बहती हुई नदियों का पानी
सागर से फिर मेल तो होगा
आयेगी फिर मस्त बहारे
दुल्हन सा सजा फिर खेत तो होगा
हरा भरा फिर बाग होगा
खुशियों का संसार तो होगा
नील गगन के तले
प्रकृति का वरदान तो होगा
स्वरचित, अप्रकाशित
@बबिता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत सुंदर रचना है....❤❤
Beautiful
Thankyou @shahtalib bhai & @udit jain
वाह, बबीता जी, वाह! अतिसुंदर👌🏻
Thanks moumita ji
Bahut achhi kavita hai
Bahut sundar rachna
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