कहना तो बहुत कुछ चाहती हूँ
पर कुछ कह नहीं पाती हूँ।
किस्से बहुत है बताने को तुझें
पर फुर्सत के पल कहा पाती हूँ
काश लौट आये वो दौर फिर
चाय के प्याले फिर टकराना चाहती हूं,
कहना तो बहुत कुछ चाहती हूँ
पर कुछ कह नहीं पाती हूँ।।
कभी मजबूरियां तो कभी जिम्मेदारियां,
अपने कंधों पर अक्सर पाती हूँ,
चाहती हूं तुम्हारे मन का करना
कुछ रिश्तों से खुद को बंधा पाती हूँ
कहना तो बहुत कुछ चाहती हूँ
पर कुछ कह नहीं पाती हूँ।।
दूरी इतनी की तेरा चेहरा भूल सा जाती हूं
फ़ोटो देख देखकर मन को बहलाती हूं,
तुम भी अजीज हो मेरे सनम
पर कर्तव्यों का भार तुमसे ज्यादा पाती हूँ
कहना तो बहुत कुछ चाहती हूँ
पर कुछ कह नहीं पाती हूँ।।
©®बबिता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice
🤗🤗🤗🤗🤗
Thanks
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