मैं काफी हु यह मुझे साल में किसी एक दिन नही बल्कि हर उस पल लगता है जब मेरे द्वारा किया एक छोटा सा काम भी मेरे परिवार और बच्चो के चेहरे पर मुस्कान ला देता है। जब मेरा परिवार पेट भरने के बाद भी मुझसे एक्स्ट्रा रोटी मांगता है। जब मेरा बच्चा कहता है माँ आपके हाथों में जादू है। उनके चहरे के संतुष्ट भाव देखकर ही मेरा पेट भर जाता है। मैं काफी हु अपने परिवार के लिए स्वादिष्ट खाना बना कर उन्हें प्रेम से खिलाने के लिए, उनकी फरमाइशें पूरी करने के लिए। बच्चो और पति के लिये ब्रेकफास्ट, लंच डिनर से लेकर उनके कपड़ो में इस्त्री करने के लिए।
मैं काफी हु अपने बच्चे को इस दुनिया की हर मुश्किल हर दुख से बचाने के लिए। जमाने के दुखों से दूर उसे अपने आँचल में छुपाने के लिए। उसे अपने सीने से लगाकर प्यार से थपकी देकर सुलाने के लिए। उसके जीवन के हर दुखो, हर गम को अपनी दुआओं से हराने के लिए।
मैं काफी हु सर्दी में ठिठुरते अपने बच्चे को कंबल ओढ़ाने के लिए। गर्मी में अपने साड़ी के पल्लो से उसे हवा करने के लिए। सूरज की तेज किरणों को अपनी छाया से ढंककर उसे धूप से बचाने के लिए। उसके बीमार होने पर उसके साथ रात भर जागने के लिए। उसके सिर पर ठंडी पानी की पट्टी, तुलसी का काढ़ा, हल्दी का दूध, और अपनी दुआ से उसकी तकलीफ भगाने के लिए।
मैं काफी हु अपने बच्चे की बलाए लेने के लिए। उसे नजर का टीका लगाने के लिए। उसे पल पल पल दुआए देने के लिए। उसकी फिक्र करने के लिए, उसकी चिंता हरने के लिए। उसकी बीमारी में डॉक्टर बनने के लिए। उसे सीखाने के लिए टीचर बनने के लिए।
मैं काफी हु उसके नन्हे कदमो को डगमगाने से पहले उसे थामने के लिए। उसके साथ खेलने के लिए, उसे साइकिल चलाना सिखाने के लिए, उसे अच्छा बुरा सिखाने के लिए, उसकी दोस्त बनने के लिए।
मैं काफी हु घर और ऑफिस दोनो संभालने के लिए। बाहर के साथ घर की जिम्मेदारी निभाने के लिए। माँ बनने के एहसास के लिए मौत से लड़ने के लिए। अगर समाज और परिवार साथ न भी दे तो खुद के दम पर अपने बच्चे का भविष्य बनाने के लिए, उसकी परवरिश करने के लिए। अपने बच्चे के साथ छोटे छोटे लम्हो में मिलती है मुझे भरपूर सांसे और अपने पूरे जीवन की प्राणवायु।
कहते है न ईश्वर हर जगह नही पहुँच सकता इसलिए उसने माँ को बनाया। जो हर किसी की होती हर किसी के पास होती है। अगर माँ साथ न भी हो तो भी अपनी संतान के लिए उसका आशीर्वाद सदैव रहता है। माँ तो माँ होती है चाहे वह इंसान की हो या जानवर की या पशु पक्षियों की। हर रूप में माँ श्रेष्ठ है। माँ में ही ईश्वर ने सृजनशक्ति दी है। माँ जीवनदायी है, कल्याणकारी है। बच्चे के साथ माँ छोटे छोटे लम्हों में भी खुशियां ढूंढ लेती है।
लेकिन जिस माँ ने हमे बोलना सिखाया, आज उसे ही हम बोलने नही देते। जिस माँ ने हमे चलाना सिखाया बुढ़ापे में हम उसका सहारा नही बनते, जिस माँ ने बचपन से हमे समझाया है, पढ़ाया है उससे ही हम यह कह देते है की माँ तुम नही समझोगी। फिर भी माँ चुप रहती है और अपना प्यार बच्चे पर सदैव बरसाती रहती है। माँ के जितना धैर्यवान और सहनशील कोई नही हो सकता। लेकिन सिर्फ साल में एक दिन माँ की महिमा जानकर उसे याद किया जाना सही है। क्या माँ साल में एक बार अपने बच्चे के लिए सोचती है, सिर्फ एक दिन उसे प्यार करती है, सिर्फ एक दिन दुआ देती है, सिर्फ एक दिन याद करती है.? नही न....तो हम क्यों सिर्फ एक दिन माँ को याद करते है, सिर्फ एक दिन ही हम उसके महत्व को याद कर लेते है और साल के 364 दिनों के लिए उसे भूल जाते है।
मेरे लेख पर अपनी राय जरूर दे। धन्यवाद
@बबिता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Very nice story
Thankyou
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