"आज खाने में क्या बनाऊँ" राधा ने पति रमेश जी से पूछा जो टीवी पर क्रिकेट देखने में व्यस्त थे।
"कुछ भी बना लो यार, लेकिन कुछ अच्छा सा चटपटा बनाना। आज कल खाने में बिल्कुल भी स्वाद नहीं आता।" रमेश जी ने मुँह बनाते हुए कहा लेकिन नजर अभी भी टीवी की तरफ ही थी।
पास बैठी निम्मी दोनों की बात सुन रही थी।
"कितना टेस्टी खाना तो बनाती है माँ, कल भरवा बैगन कितने स्वादिष्ट बने थे| आधे से ज्यादा सब्जी तो आपने अकेले ही चट कर ली थी और फिर भी आप" निम्मी ने कहा|
"अरे तुम लोग क्या जानो स्वाद क्या होता है। वही बैगन अगर मैं बनाता तो उंगलियां चाटते रह जाते तुम सब। तुम्हारी माँ तो कभी सब्जी में मिर्च डालना भूल जाती है, तो कभी दाल जला देती है और रोटी देखो तो वो भी मोटी मोटी" रमेश जी बोले और फिर टीवी देखने में व्यस्त हो गए।
राधा किचन में गई और भिंडी ला कर काटने लगी। राधा हमेशा पति के हिसाब से चटपटा खाना बनाने की कोशिश करती लेकिन कभी ज्यादा मिर्च हो जाये तो बच्चे चिढ़ने लगते कम हो जाये तो रमेश। पति और बच्चो के स्वाद के बीच पिसती राधा सब्जी में मिर्च का संतुलन न बना पाती। दूसरी ओर शाम के खाना बनाने का समय और उसके सीरियल बालिका वधु का समय एक ही था इसलिए कई बार खाना बनाते बनाते टीवी पर फोकस कर बैठती इस चक्कर में भी कभी कुछ डालना भूल जाती तो कभी गैस बंद करना। पर ऐसा एक दो बार ही हुआ था पर रमेश जी को तो जैसे बहाना ही मिल गया था। जब भी कोई खाने की बात होती राधा द्वारा हुई गलतियां गिनवा दी जाती।
रमेश जी खुद खाना बनाने में एक्सपर्ट थे। अपनी माँ की मदद करने की इच्छा से उन्होंने बचपन में ही खाना बनाना सीख लिया था इसलिए हर डिश बनाने में निपुण थे लेकिन नोकरी और शादी के बाद उनका खाना बनाना छूट गया था। अब वो बहुत कम अपना यह शौक पूरा कर पाते और अब जब निम्मी भी बड़ी हो गई और राधा की मदद करने लगी तब से यह बिल्कुल ही बंद हो गया। अब जो खुद ही किसी चीज में माहिर हो उसे दूसरे की चीज भला कैसे पसन्द आ सकती है इसलिये राधा के बनाए खाने में उन्हें हमेशा कमियां ही दिखती थी।
रमेश के स्वाद को ध्यान में रखते हुए राधा ने आज बड़ी मेहनत और मन लगाकर खाना बनाया। दाल, चावल, भिंडी की सब्जी, रायता, छोटी और पतली रोटियां सब कुछ परफेक्ट। जब भोजन रमेश जी के सामने रखा गया। "ये कैसी दाल बनाई है पानी पानी जैसी, बिल्कुल भी स्वाद नहीं है इसमें। और भिंडी में भी कितना नमक है"
"कहा पापा हमें तो नमक तेज नहीं लग रहा" सौरभ बोला
"हा पापा मुझे भी नमक सही लग रहा है" निम्मी ने भी सौरभ की साइड ली
"देखा मैं कहता था न कि तुम लोगो को तो बिल्कुल भी स्वाद नहीं है खाने का। अगर यही सब्जी मैं बनाता तो तुम सब उंगलियां चाटते रह जाते" रमेश जी बोले
अब राधा से रहा न गया और बोली "सुनिए लॉक डाउन के कारण आज कल आप घर पर ही है तो क्यों न आप ही खाना बनाया करें। हम लोगो का भी थोड़ा टेस्ट चेंज हो जाएगा। निम्मी और सौरभ को भी तो पता चले कि उनके पापा कैसा खाना बनाते है और मुझे भी थोड़ा आराम मिल जाएगा"
निम्मी और सौरभ ने भी राधा की हां में हां मिलाई। अब रमेश जी चुप चार लोगों का सुबह शाम खाना फिर तो लॉक डाउन में घर में रहने का सारा मजा ही चला जायेगा। ऊपर से आज कल टीवी पर पुराने आइ.पी.एल मैच का भी टेलीकास्ट हो रहा है क्रिकेट कैसे देख पाऊँगा फिर...मन ही मन सोचते रहे फिर भी उस समय मना न कर पाए।
दूसरे दिन सब तैयार थे कि आज तो पापा खाना बनाने वाले हैं, तभी रमेश जी नवरत्न तेल की शीशी निम्मी को देते हुए बोले "अरे निम्मी बेटा जरा तेल से सिर की थोड़ी मालिश तो कर दे घर में रह रह कर दिमाग गर्म हो गया है और थोड़ा तेल अपनी माँ को भी लगा दे, वो भी आज कल बहुत गर्म हो रही।"
निम्मी और राधा एक दूसरे की और देख कर हँसने लगे। "अरे जल्दी करो भई खाने का भी समय हो रहा है। राधा आज अपने हाथ के लौकी के कोफ्ते बनाना बहुत अच्छा बनाती हो तुम" रमेश जी बोले।
राधा मुस्कुराते हुए किचन की और बढ़ गई। उसके बाद से रमेश जी को कभी खाने में कमी नहीं दिखी। उन्हें स्वाद का ओवरडोज जो मिल गया था।
@बबिता कुशवाहा
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