रवि भइया हल्के से ही पढ़ाई में बड़े तेज हते। स्कूल के गुरु जी जबे भी पिताजी से मिलबे आते रवि भइया की बड़ी तारीफ करत ते। पिताजी खुशी से फुले नई समाउत ते। उनकी तारीफ मोये बिल्कुल पसंद न ती। पिताजी जब कब मोरे से बोल ही देत ते की रवि जैसों होशियार बन उसे मोये और चिढ़ आ जात ती। मैं कोनऊ न कोनऊ तरीका से उन खा डांट ख़िलाबे को बहानो ढूढ़त रात तो।
स्कूल में आखिरी इम्तिहान आने वाले ते। मैंने कछु पर्ची बनाई और भइया के स्कूल के कपड़न में डाल दई। गुरुजी खा चैकिंग के बेरा उनके कपड़न से पर्ची मिली और उन्हें उ पेपर नई देबे मेलो। जी से बे परीक्षा में फेल हो गए। पिताजी ने उनसे कछु नई कई पर भइया उ के बाद से उदास रेबे लगे ते। भइया खा पतो चल गओ हतो की बे पर्ची मैंने ही उनके जेब मे रखी ती लेकिन मो खा बचावे के लाने उन ने जा बात कोउ से भी नई बताई। बाद में मोखा बहुत पछतावो भओ। मोरे कारण ही उनको एक साल खराब हो गओ हतो। मैंने उनसे माफ़ी मांगी। पर उके बाद से मैंने उनसे नफ़रत करबो और चिढ़वो छोड़ दओ तो। आज भी जब मैं उन दिनन का याद करत हो तो अपनी बचपन की उ नादानी पर पछतावो होत है।
मोरी बुंदेली कहानी अच्छी लगी होये तो लाइक जरूर करियों। धन्यावाद
स्वरचित
@बबिता कुशवाहा
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