आज के समय मे एक बहु से हमेशा ये अपेक्षा की जाती है कि वो अपने ससुराल के लोगो को मायके के लोगो की तरह ही प्यार ओर सम्मान दे तो ससुराल के लोगो का भी तो फर्ज है कि बहु को बेटी की तरह रखें।
ऐसा क्या है जिसे आप अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए एक लड़की को अपने बेटे के लिए विवाह के लाते है उसे अपनापन नही दे पाते। क्यों उसे हमेशा यही कह कर की ये तो पराये घर से आई है उसे पारिवारिक मामलों में बोलने या अपना पक्ष रखने की आजादी नहीं दी जाती। तो क्या उसे आप सिर्फ अपने घर के काम करवाने के लिए ले कर आये है। अपनी खुद की बेटी जिसे दूसरे घर जाना है उसके लिए अलग नियम और वो बेटी जो अपना घर-बार छोड़कर आपका घर बसाने आई है उसके लिए अलग नियम। वाह रि दुनिया।।।।।
दोस्तों, हमारे समाज में आज सभी ससुराल वाले यही कहते हैं कि हम बहु को बेटी की तरह रखते हैं, फिर क्यों कदम-कदम पर उन्हें ये एहसास दिलाया जाता है कि तुम बेटी नहीं बहु हो। सिर्फ बहुओं से ही ये अपेक्षा की जाती है कि वह सास ससुर को माँ बाप की तरह प्यार और सम्मान दें और जो लड़की अपने माँ बाप भाई बहन को छोड़कर आती है, वह ससुराल में सभी को अपने परिवार की तरह मान भी लेती है| पर क्या ससुराल में उसे बेटी की तरह माना जाता है? उसे बेटी की तरह पहनने-ओढ़ने, घूमने-फिरने, हँसने-बोलने की आजादी दी जाती है?
मेरे लेख पर एक बार विचार जरूर कीजियेगा। धन्यवाद
स्वरचित, मौलिक
@बबिता कुशवाहा
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