मायके का मोह

एक बेटी की मनोदशा दर्शाती कविता

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 04 Feb, 2021 | 0 mins read
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शादी के बाद वो नए घर को अपनाती है,

पर मायके का मोह वो छोड़ न पाती है।

अपनी इच्छाओं को दबा वो जाती है,

ससुराल में सबकी खुशियों का ध्यान रखती है,

अपने घर को एक औरत खूब सँवारती है,

पर मायके का मोह वो छोड़ न पाती है।

अपने ही घर जाने की परमिशन के लिए सबसे गिड़गिड़ाती है,

परम्परा के नाम पर दुनिया औरत को ही दबाती है,

पर मायके का मोह वो छोड़ न पाती है।

खुली हवा में उड़ती एक बेटी जिम्मेदारियों में बंध जाती हैं,

अपने हर रिश्ते को वो दिल से अपनाती हैं,

पर दुनिया वालो की नजरों में वह पराई कहलाती है,

पराये घर में स्वयं का अस्तित्व तलाशती हैं

पर मायके का मोह वो छोड़ नहीं पाती हैं।

©®बबिता कुशवाहा

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Babita Kushwaha

Babitakushwaha

Comments

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  • Vridhi Chug · 3 years ago last edited 3 years ago

    Kya baat... bohot hi oomda likha hai aapne

  • Babita Kushwaha · 3 years ago last edited 3 years ago

    शुक्रिया

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