उसका आना मेरे लिए जिंदगी की नई शुरुआत थी... तीन साल के बेटे को निहारते हुए सरिता बोली और उसके पास बैठ गई। आज एक बार फिर उसे वह दिन याद आ गया जब सुरेश की दुल्हन बन कर आई थी। सुरेश एक कंपनी में अच्छे पद पर कार्यरत था। घर मे सुख सुविधाओं की भी कोई कमी न थी। सुरेश सरिता से बहुत प्यार करता था। हर छुट्टी पर बाहर घूमने जाना, मूवी देखना, मनपसंद शॉपिंग करना, जब मन चाहे रेस्टोरेंट में खाना खाने जाना, सरिता की तो जैसे हर मुराद ही पूरी हो गई थी सुरेश जैसा इतना चाहने वाला जीवनसाथी पा कर। यही तो वो जिंदगी थी जिसकी सरिता हमेशा कल्पना किया करती थी।
सरिता के सास ससुर भी साथ मे ही रहते थे उन्हें सुरेश का इस तरह सरिता पर पैसे लुटाना बिल्कुल भी रास न आता। जबकि सुरेश सरिता के साथ साथ उसके माँ बाप की खुशियों और जरूरतों का भी पूरा ख्याल रखता था। सरिता भी अपनी तरफ से उनकी सेवा में कोई कमी न छोड़ती। पर सासूमाँ को हमेशा लगता कि शादी के बाद से सुरेश अपनी पत्नी को हमसे ज्यादा तवज्जो देता है लेकिन सुरेश के आगे कभी कुछ कह न पाते।
सरिता और सुरेश अपनी नई नई शादी और जिंदगी का भरपूर मजा ले रहे थे। पर सरिता की खुशियों को जाने किस की नजर लग गई। एक रोज रात नो बजे तक भी सुरेश ऑफिस से घर नही पहुंचा था। सरिता कभी घड़ी देखती कभी दरवाजा। सुरेश का फ़ोन भी बंद आ रहा था उसके सभी दोस्तों से फोन पर पूछ चुकी थी लेकिन सुरेश का कुछ पता न चला। इन्तजार करते करते 11 बजने को थे एक अनजान भय सरिता को सताने लगा था तभी अचानक फ़ोन बजा। हेलो आप सुरेश के घर से बोल रही है सुरेश की कार का एक्ससिडेंट हो गया है आप जल्दी से लाइफ लाइन हॉस्पिटल आ जाओ और फोन कट गया। सरिता तो जैसे सन्न रह गई हड़बड़ाते हुए ससुर जी को लेकर हॉस्पिटल पहुँची लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। डॉक्टर ने कहा सिर में चोट लगने के कारण मौके पर ही.......
सरिता को गहरा सदमा लगा उसकी आँखों से एक भी आंसू न गिरा। सुबह होने वाली थी धीरे धीरे रिश्तदार घर मे इकट्ठा होने लगे थे। सुरेश के शरीर को आंगन में आखिरी दर्शन के लिए रख दिया गया। सुरेश के शरीर को देखते ही सरिता दहाड़े मार कर रोने लगी ऐसी चित्कार के सारा मोहल्ला कांप उठा। जैसे तैसे अंतिम विदाई दी गई। सरिता का तो जैसे जीने का सहारा ही चला गया हो अभी तो ठीक से जिंदगी देख भी न पाई थी ओर अब अपनी जिंदगी खुद पर ही बोझ लगने लगी। सास ससुर तो उसे पहले ही पसन्द न करते थे अब उनका बर्ताव उसके प्रति और रूखा हो गया। मायके जाने से भी कोई फायदा न था माँ बाप तो कई साल पहले ही गुजर गए थे और भैया भाभी का अपना परिवार है वहाँ जाकर उन पर बोझ नही बनना चाहती थी। सास तो हमेशा सुरेश के लिए सरिता को जिम्मेदार ठहराती "तेरे कारण ही मेरा बेटा चल बसा, मनहूस कहि की, न तुझसे शादी होती और न मेरा बेटा जाता। जब तक जिंदा था तूने चैन से नही रहने दिया उसे, हमेशा अपने पीछे ही घुमाती रही। तेरा मुँह देख लू तो मेरा दिन भी खराब हो जाता है जा यहाँ से"
सरिता की जिंदगी बिल्कुल बदल गई थी उसे लगता सही तो कह रही है मांजी। जब मेरे जीने का सहारा ही नही है तो मैं जीकर क्या करुँगी। कई बार हिम्मत करती की अपनी जीवन लीला भी समाप्त कर ले पर न जाने कौन सी अदृश्य शक्ति उसे रोक लेती। उसका जीवन बिल्कुल नीरस और उदास हो गया था। अभी सुरेश को गये एक हफ्ते ही हुए थे कि सरिता को चक्कर आया और बेहोश हो गई। आनन फानन में हॉस्पिटल ले जाया गया। डॉक्टर ने बताया कि वह माँ बनने वाली है। पर जहाँ खुश होने की बात थी वह और दुखी हो गई। पति के बिना कैसे करेंगी वह बच्चे की देखभाल। सोचा कि बच्चे के साथ खुद को भी खत्म कर ले पर लोगो ने समझाया कि वह सुरेश की अंतिम निशानी है उसे दुनिया मे आने दिया जाए। पैसे की भी कोई कमी न है सुरेश की इतनी जायदाद भी तो तेरी संतान की ही होगी।
अपार पीड़ा और गम के साथ जैसे तैसे 9 महीने बाद सरिता ने एक बेटे को जन्म दिया। जब पहली बार उसने बेटे को गोद मे लिया तो लगा जैसे वह सुरेश का ही साया हो जो कह रहा है लो मैं फिर आ गया हूं तुम्हारा सहारा बन कर अब आँसू पोछो और अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करो। अब सरिता ने अपनी सारी पीड़ा और दुख दिल के एक कोने में छुपा लिया है। अब उसे अपने बेटे लक्ष्य के लिए माँ और बाप दोनो की जिम्मेदारी निभानी है। लक्ष्य का इस दुनिया मे आना उसके लिए जिंदगी की नई शुरूआत थी।
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@बबिता कुशवाहा
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