"तुम्हें पता है न, तीन दिन बाद होली है" चहकते हुए रवि ने कहा
"हाँ भई याद है और कल माँ बाऊजी भी आ रहें है यही न? हाँ तो आगे" रवि की और देखते हुए मधु ने कहा
"आगे यहीं की तुम होली का नाश्ता वगैरा बना लो, वरना समय कहा मिलेगा उनके आने के बाद"
"नाश्ता....! तुम्हारा मतलब होली की गुजिया.... इसमें बनाना क्या है मार्केट से ले आएंगे हर बार की तरह" बड़ी-बड़ी सी आँखे दिखाते हुए मधु बोली
"ओह हो मधु! हर बार की बात और थी इस बार माँ बाऊजी हमारे यहाँ होली पर पहली बार आ रहें है और तुम बाऊजी को जानती ही हो, सादा और सरल जीवन जीने वाले मेरे बाऊजी न तो खुद बाहर का खाते है और न किसी को खाने देते है। कभी कभार मजबूरी हो तो अलग बात है ऊपर से बहु बेटियों वाला परिवार है घर पर सब बनाया जा सकता है तो बाहर से लेने की क्या जरूरत है।"
पर...मुझें तो गुजिया बनानी ही नहीं आती। आज माँ की बात याद आ ही गई वो हमेशा कहती थीं, सब काम सीख ले लाड़ो ससुराल में तेरे नाटक न चलेंगे। पर कभी उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। जैसे तैसे शादी होने तक खाना बनाना ही सीख पाई थी। फिर रवि जैसा खूब प्यार और उसे समझने वाला जीवनसाथी मिल गया। शादी के कुछ दिनों बाद ही वह रवि के साथ दिल्ली आ गई थी। उसके बाद सिर्फ बड़े त्यौहारों पर ही ससुराल जाना होता। वो भी सिर्फ 2-3 दिनों के लिए। बेटे बहु की आने की खुशी में सासु माँ पहले से ही पकवान वगैरा बना कर रख लेती। पर इस बार रवि को छुट्टी न मिल पाने के कारण माँ बाऊजी खुद ही यहाँ आने को तैयार हो गए थे।
रवि तो कह कर ऑफिस चला गया। पर मधु का मन किसी काम में न लग रहा था। क्या करें कुछ समझ में न आया। पहले सोचा माँ को ही फ़ोन लगा कर पूछ लूं पर माँ बताएगी बाद में और सुनाएंगी पहले। चोरी छिपे बाजार से लाना भी तो गलत था। सासु माँ तो चुटकियों में समझ जाएंगी की ये गुजिया घर की बनाई न हैं। यूट्यूब खोल कर देखा वहाँ रेसिपी की भरमार है पर हर रेसिपी अलग तरीके की है, कौन सा तरीका सही है कैसे पता चलेगा?
सोच ही रहीं थीं कि दरवाजे की घन्टी बज उठी...
"इस समय कौन होगा?" बुदबुदाते हुए दरवाजा खोला।
"मैडम आपका पार्सल है, यहाँ साइन कर दीजिए"
बड़े से बॉक्स पर मधु का नाम और पता लिखा था "मैंने तो कुछ भी आर्डर नहीं किया था फिर ये शायद रवि ने कुछ मंगवाया होगा" सोचते हुए पार्सल खोला तो खुशी से उछल पड़ी। गुजियों से भरा हुआ डब्बा था साथ में एक चिट्ठी भी थीं।
"जब से तूने बताया है कि इस बार तुम लोग गांव नहीं जा रहे तब से ही बहुत बुरा सा लग रहा था। अपनों के बिना कैसा त्यौहार? फिर एक दिन समधन जी से बात हुई थीं तो पता चला कि वो लोग तुम्हारे साथ होली मनाने दिल्ली ही आ रहे है, तब जाकर मन को थोड़ी राहत हुई। मैं तो वहाँ नही आ सकती पर अपने ढ़ेर सारे प्यार के साथ ये गुजियां भेज रहीं हूँ और हाँ पेपर के पीछे गुजिया बनाने की रेसीपी भी हैं। अबकी बार जरूर सीख लेना।
खूब सारे प्यार के साथ तुम्हारी माँ
हैप्पी होली।"
चिट्टी पढ़ मधु की आंखे नम हो गई। सच में माँ तो माँ होती है, वो दूर से भी अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ कर जाती है। अगले दिन माँ बाऊजी आ चुके थे। सबने मिलकर खूब होली खेलीं। पूरा परिवार होली के रंग में रंगा था। गुजियों की थाल सजाते हुए मधु सोच रहीं थी, सच ही कहा था माँ ने कि अपनों के बिना कैसी होली?
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@बबिता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत सुंदर
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