राधा नई नई शादी करके रघुवंशी परिवार में घर की बड़ी बहू बनकर आई थी। सासूमाँ सरिता जी ने बहुत खुशी के साथ उसका स्वागत किया। सरिता जी दो बेटों की माँ थी पति का देहांत कई साल पहले ही हो चुका था। छोटा बेटा पढ़ाई के सिलसिले में दूसरे शहर रहता था। बड़े बेटे राकेश के ऑफिस जाने के बाद सरिता जी घर मे अकेली ही रहती थी पर आज जब उन्होंने राधा के गृहप्रवेश की रस्म करी तो सबसे ज्यादा खुश सरिता जी ही थी उनके अकेलपन और बोरियत को दूर करने वाला कोई साथी जो मिल गया था।
दोनो सास बहु की खूब जमती। सरिताजी भी राधा से अपने अच्छे बुरे हर किस्से को शेयर करती वो हमेशा कहती राधा तुम बहु नही मेरी सखी हो। राधा भी सरिताजी में अपने माँ की छवि देखती। कुछ दिनों में राधा ने नोटिस किया की सरिताजी कभी भी राधा को अपने कमरे में नही आने देती ज्यादातर वो कमरे के बाहर ही अपना काम करती और जब भी अपने कमरे में जाती है तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लेती है। किसी काम से कभी बाहर भी जाना होता तो कमरे में ताला लगा कर जाती। राधा को बड़ा अजीब लगता "माँजी तो बोलती है कि दिन में मुझे निंद नही आती तो फिर अंदर से दरवाजा बंद क्यों करती है। आखिर ऐसा क्या है जो बंद दरवाजे के अंदर करती है"
कई बार तो सरिताजी के बोलने की भी आवाज आती ऐसा लगता कि वो किसी से बाते कर रही। अब राधा को माँजी की हर बात पर शक सा होता इस उम्र में भला किससे बात करती है अगर किसी रिश्तेदार को फोन ही करती है तो दरवाजा बंद करने की क्या जरूरत। जब राधा ने पति राकेश से बात की तो राकेश भी गुस्सा हो गया "पिताजी के जाने के बाद माँ का ज्यादातर समय उनके कमरे में ही बितता था पर अब तुम्हारे आने से वो थोड़ा कम हो गया है। और तुम्हे क्या हम भाईयों को भी कमरे में जाने की परमिशन नही है पर हमने कभी इससे ज्यादा जानने की कोशिश नही की आखिर उनकी भी कुछ प्राइवेसी है। और तुम भी उनकी प्राइवेसी में दखल मत दो।"
पर राधा कहा मनाने वाली थी उसने तो ठान लिया था कि कैसे भी वह यह जानकर रहेगी कि बंद कमरे में माँजी करती क्या है। एक रोज सरिताजी अपने कमरे में थी राधा ने किचन से ही उन्हें चाय पीने के लिए आवाज दी पर जब काफी देर तक वो नही आई तो राधा खुद उन्हें चाय देने चली गई कमरे का दरवाजा जैसे ही छुआ वो खुल गया शायद ठीक से बंद नही हुआ था। दरवाजा खुलते ही सरिताजी सकपका गई जो पलंग पर एक संदूक खोले बैठी थी। राधा को देखते ही हड़बड़ाते हुए उन्होंने संदूक बंद कर दिया और तुरंत कमरे से बाहर आ गई। इतने कम समय मे राधा भी उस संदूक के अलावा कमरे में और कुछ न देख पाई। राधा के मन मे अब और उत्सुकता बड़ गई। "आखिर उस संदूक में ऐसा क्या हो सकता है जो माँजी सब से छुपा कर रखती है।"
उस दिन के बाद से राधा के दिमाग मे बस वही बात चलती रहती। सरिताजी से भी बात करने में अब उसे वो अपनापन न लगता और न ही वह खुशी होती जो पहले होती थी। उसे बस यही लगता कि ऐसे तो माँजी हमेशा बोलती है की मैं उनकी बहु कम और सखी ज्यादा हु तो मुझसे उस संदूक का रहस्य क्यों नही बताना चाहती। सरिताजी भी राधा के व्यवहार में आये परिवर्तन को समझ रही थी। एक दिन उन्होंने राधा को चाय बना कर अपने कमरे में लाने को कहा। राधा को बड़ा आश्चर्य हुआ आज अचानक माँजी को क्या हुआ खुद ही अपने कमरे में आने की परमिशन दे दी उसने जल्दी से चाय बनाई और सरिताजी के कमरे में पहुँच गई। जैसे ही कमरे में पहुँची कमरा रंगबिरंगी झालरों से सजा था पर उनका अब रंग उड़ चुका था कमरे का कोना कोना फूलों के गुलदस्तों से सजा था पर उसके फूल पूरी तरह सूख चुके थे। कमरे की दीवारों पर बिना हवा के गुब्बारे चिपके हुए थे। राधा देखते ही बोली लगता है किसी ने यह कमरा बहुत खूबसूरती से सजाया था पर शायद बहुत समय हो गया है।
"हाँ पंद्रह साल हो गए इस कमरे को सजे हुए" सरिताजी बोली जो पलंग पर बैठी थी उनके सामने वही संदूक रखा था।
"क्या! पंद्रह साल हो गए इसे और अभी तक इस कमरे की सफाई नही हुई" राधा ने चौकते हुए कहा
सरिता जी बिना कुछ बोले संदूक खोलने लगी। संदूक खुलता देख राधा की आंखे चमक रही थी। पर ये क्या संदूक में तो बस एक डायरी के सिवाय कुछ नही था।
"क्या माँजी एक डायरी को इतनी हिफाज़त से इस संदूक में रखा है" चाय की ट्रे रखते हुए राधा बोली
"यह सिर्फ डायरी नही है राधा, यह मेरा खजाना है जिसे मैं बहुत अच्छे से सहेजकर रखती हूं। पंद्रह साल पहले आज के ही दिन हमारी शादी की सालगिरह थी। तुम्हारे बाबूजी ने ही यह कमरा सजाया था। पर उसी दिन उनके ऑफिस में जरूरी मीटिंग भी थी घर से एक घंटे का बोल कर निकले थे पर वह एक घण्टा आज तक खत्म नही हुआ" कहते कहते सरिताजी कि आंखे नम हो गई
"तो क्या तभी से यह कमरा ऐसा ही है"
"हा मैं उनकी यादों को खुद से अलग नही होने देना चाहती जब तक मैं जिंदा हु उनके द्वारा इतने प्यार से सजाएं कमरे में हर साल अपनी सालगिरह मनाती हु। कभी कभी तो लगता है वो मेरे सामने ही है मुझसे बातें कर रहे है। ये डायरी भी उन्ही की है उन्हें डायरी लिखना बहुत पसंद था उनके जाने के बाद उनकी पसन्द को मैने अपनी पसंद बना लिया और यह डायरी अब मैं लिखती हु। यह दुनिया मुझे पागल न समझे इसलिए अपनी जिंदगी और शौक को बाहरी दुनिया से परे इस बंद कमरे में रखती हूं" सरिताजी की आँखों से आँसू सूख चुके थे अब उनकी आंखों में चमक थी प्रेम की चमक।
राधा को जब उस कमरे का रहस्य पता चला तो खुद पर बड़ी शर्मिंदगी हुई माँजी तो कितनी पाक और साफ दिल की है और मैंने न जाने उनके बारे में कितना गलत सोचा। वो पागल नही है बल्कि वो तो आज भी अपने पति के प्रेम में डूबी हुई है। हमसफर का साथ निभाना तो कोई माँजी से सीखे। पलको को पोछते हुए राधा कमरे से बाहर आ गई और दरवाजा फिर बंद हो गया।
@बबिता कुशवाहा
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