आज मेरी छोटी बहन की शादी है। पिछले छः महीने जब से बहन का रिश्ता पक्का हुआ था पापा ने एक पल का भी चैन नही लिया था। मेरी शादी के बाद से ही पहले तो यही चिंता की छोटी को भी अच्छा लड़का मिल जाये, बिना दहेज की मांग वाला। आज के समय मे अच्छा लड़का तो सपना सा ही है, खुशकिस्मती से पापा को एक अच्छा लड़का मिल भी गया। पर समाज मे दिखावे का जो चलन है उसके हिसाब का तो ख़र्चा चाहिए ही फिर उसके लिए चाहे रिश्तेदारों से मांगना पड़े या फिर बैंक से कर्ज लेना पड़े।
बैंक से कर्ज लेकर पापा ने जैसे तैसे पैसों की जुगाड़ कर ली। पैसों की जुगाड़ के बाद भी शादी की उलझनों की चिंता में पापा महीनों से रात को सो भी नही पा रहे थे।
शादी का दिन भी आ गया। शादी में इतना खर्चा करने पर भी पापा ने अपने लिये शादी में पहनने के लिए पुराने कपड़े ही चुने क्योंकि उनके हिसाब से उनके कपड़े कौन देखेगा। घर मे तरह तरह के पकवान बने पर पापा कुछ खा नही सकते थे। उनका व्रत है न... कन्यादान जो करना है। हार्ट के मरीज भी है और अपनी दवाई लेना तो भूल ही गए। किसी तरह मैने और बहन ने दूध और केले के साथ दवाई खिला कर ही संतुष्टि ली।
शाम होने लगी और पापा की घबराहट बढ़ रही थी रह रह कर माथे पर फरवरी के महीने में भी पसीना आ रहा था। बारात द्वार पर आ चुकी थी और शादी स्थल लाइट्स से जगमगा रहा था। जैसे जैसे डीजे की आवाज तेज आनी शुरू हुई। घबराहट भी बढ़नी शुरू हो गई जैसे उनका जीवन का ये आखिरी इम्तेहान हो और अगर कोई कमी रह गई तो उसकी भरपाई मुश्किल है।
आखिर बारात आ गई। पापा हाथ जोड़े द्वार पर फूल माला के साथ उनका स्वागत कर रहे थे। बारातियो की संख्या देखकर पापा घबरा गए थे। धीरे से अपने घर और रिश्तेदारों के बीच गए और सबसे निवेदन किया कि बारात के खाने के बाद ही खाने जाए इज्जत का सवाल है बाराति तय संख्या से कुछ ज्यादा ही जान पड़ते है। घर के लोग तो जरूर समझ गए पर रिश्तेदार...! वो कहा समझने वाले होते है। लिफाफा दिया है तो बाद में क्यों खाये। फिर भी खाने का कार्यक्रम अच्छी तरह से हो गया।
इसी बीच खबर आई कि बारातियों को बैठने के लिए कुर्सियां कम पड़ गई है। बारात में आये कुछ लोग व्यवस्था को लेकर हंगामा करने लगे। उनके अनुसार पापा ने उनका आदर सत्कार ठीक से नही किया। क्योंकि वो लड़के वाले है इसलिये कुर्सियों का कम पड़ना उनका अपमान है। बेचारे पापा हाथ जोड़े जोड़े उनके सामने फिर रहे थे।
उनकी उस दशा को जब भी याद करती हूं आज भी आँसू आ जाते है। कोई भी लड़की अपने पिता को किसी के भी सामने गिड़गिड़ाते हुए नही देखना चाहेंगी। उस दिन मुझे पहली बार खुद के लड़की होने का दुख हुआ काश मैं लड़का होती तो उन्हें ये दिन न देखना पड़ता। वो लड़के वाले है इसलिए नखरे दिखाना अपना गौरव समझते है और मेरे पापा को बेटी का पिता होने की सजा मिल रही थी जो उन्हें सबके सामने माफी मांगनी पड़ी।
उन्हें हाथ जोड़े देख रिश्तेदारों में भी खुसर फुसर होने लगी थी सब अपनी अपनी बातें बना रहे थे। कोई कहता इतना खर्चा किया है तो थोड़ी कुर्सियां और माँगवानी चाहिए थी तो कोई कहता मैरिज गार्डन में इतनी शानदार शादी कर रहे थोड़ा कम ज्यादा तो होता रहता है इतनी सी बात में इतने हंगामे की क्या जरूरत।
किसी तरह बारातियों को शांत कर आगे का कार्यक्रम शुरू हो पाया। भले ही उस समय पापा की आंखों से आँसू बाहर न आये हो पर उनका मन कितना रोया ये मैं अच्छी तरह देख पा रही थी।
कन्यादान के समय माँ पापा दोनो ही रोये जा रहे थे। जिस बेटी को खुद से कभी दूर नही होने दिया उसे एक पल में किसी अनजान को कैसे सौप दे..? जिन्हें अभी कुछ महीनों पहले से ही जानते है कैसे..? कैसे वो अपनी इच्छाएं अपनी खाव्हिशे उन अजनबियों को बता पाएंगी.? इसी कशमकश में उन्होंने बहते हुए आंसुओ की धारा में बेटी का कन्यादान भी कर दिया।
और अब सबसे मुश्किल घड़ी आने वाली थी। घर के सब लोग पापा को ढूंढ रहे थे और वो एक कोने में अपने आंसुओ को छुपाये बैठे थे। विदाई की घड़ी आ चुकी थी। बेटी को देखते ही वो खुद को रोक नही पाए और बाप बेटी बहुत देर तक गले लग कर रोते रहे.... उस समय पापा रो रो कर एक ही बात बोल रहे थे कि वो दुनिया के रिवाज के आगे कितना मजबूर है..... जो अपनी बेटी को अपने साथ नही रख सकते उसके रहने के लिए उन्हें नया घर ढूंढ़ना पड़ा। रो रो कर बेटी से माफी मांग रहे थे।
बेटी की विदाई हुई मानो सब खत्म, मन से भी और धन से भी। बेटी के साथ घर की रौनक और चहल पहल भी विदा हो चुकी थी। मेरी शादी के बाद मुझे लगता था कि शादी में सबसे मुश्किल लड़की के लिए होती है। पर आज एक रात के बाद मैंने पापा की हालत और मनोदशा को जिस तरह पल पल महसूस किया है, अब लगता है कि कितनी गलत थी मैं.....सबसे मुश्किल तो ये उन माँ बाप के लिए है जिनकी बेटी भी गई, घर की दौलत भी गई, बारातियों के हंगामे के कारण इज्जत भी गई और शायद हिस्से में आया तो सिर्फ कर्ज जो उन्होंने बेटी की शादी के लिये लिया है। साथ ही वो दुख, वो चिंता, वो तड़प, वो एहसास जिसे कोई नही समझ सकता। क्योंकि अगर कोई मुझसे कहे कि अपने बेटे को एक दिन के लिये खुद से दूर रहने के लिये तो शायद मैं न कर पाऊ और वो बेटी के माँ बाप क्या क्या कर जाते है।
दोस्तो हम शायद विदाई के रिवाज को तो नही बदल सकते पर लड़का होने के गुरुर को तो मिटा ही सकते है। अरे! लड़के वाले हो तो क्या हुआ तुम से ज्यादा अमीर तो वो बेटी का बाप है जिसकी चौखट पर तुम अपना घर सवांरने के लिए लक्ष्मी लेने आये हो। तुम श्रेष्ठ कैसे हो जाते हो...? महान तो वो है जिसने तुम्हारा घर सवांरने के लिए अपना घर उजाड़ दिया। उसके बाद भी हमारे समाज मे दहेज के लिए लडक़ी को परेशान किया जाता कि तेरे बाप ने दिया ही क्या है। सच तो यह है कि एक बेटी के पिता से गरीब आदमी कोई नही होता क्योंकि वो तो अपने जीवन भर की पूंजी एक झटके में किसी को सौप देता है। मेरे लिए मेरे पापा से बढ़कर कोई नही मेरे पापा ही मेरा अभिमान है और मेरे जीवन के रियल हीरो है।
मेरे लेख पर अपनी प्रतिक्रिया देना न भूले। पसन्द आये तो मुझे फ़ॉलो करे। धन्यवाद
@बबिता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
संदेशप्रद
Thanku
वाह वाह बहुत ही सुंदर भावपूर्ण एवं मार्मिक लघु कथा
Really great babita ji
Thankyou @arun ji @manisha ji 🙏🙏
Nice
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