भाई बहन को रिश्तो वास्तव में का होत है, कैसो होत है जो शब्दन में न लिखो जा सकत है और न बताओ जा सकत है। एक भाई के लाने बहन और एक बहन के लाने भाई का मायने रखत है जो सिर्फ बे भाई बहन ही जान और समझ सकत है।
मोरो भाई मो से आठ साल हल्को है मतलब जब उ भओ तो मोये में इत्ती समझ हती कि मैं भाई को मतलब समझ सको। घर मे आर्थिक परेशानी भी हति सो माँ और पिताजी दोनउ ही काम पर जाये करत ते। उनके जाबे के बाद मोये ही अपने हल्के भाई बहनन को ख्याल रखने पड़त तो। हम तीनउ भाई बहन को नाओ एकई स्कूल में लिखाओ गओ जिसे उनके स्कूल से लाबे और ले जाबे को काम मैं ही कर सको। माँ पिताजी दिनडूबे के बाद ही घरे आ पाउत ते। उनके जाबे के बाद अपने भाई बहनन को खाना खिलाबो, सुलाबो, उनको ध्यान रखबो जो सब जिम्मो मोरो ही होत तो। जब मोरो भाई तीन साल को हतो तबई उको नाओ स्कूल में लिख गओ तो तब मोरी उमर लगभग 11 साल की रई हुईए।
इतनी हल्की उमर में ही मैंने घर की जिम्मेदारी संभाल लई ती। दिन डूबे हम तीनउ भाई बहन खिड़की के एंगर बैठ जात ते। काये से हमाये एक कमरा की खिड़की सड़क की तरफ खा खुलत ती और उमे से दूरई से ही हम माँ खा आउत देख लेत ते।
रोज की घाई उदना भी मैं अपने भाई के संगे खिड़की पे बैठी माँ के आबे को इंतजार कर रइ ती। तभउ मोरे भाई ने माँ खा दूर से आउत देख लओ और बारे जाबे की जिद करन लगो। भले ही उ पुरो दिन मोरे संगे रात तो पर माँ तो माँ ही होत है उनकी जंगा तो कोनऊ नई ले सकत है। हल्की बहन सो रही ती सो मैंने भाई को हाथ पकड़ो और हम दोनउ सड़क के एंगर जा के खड़े हो गए और माँ के आबे को इंतजार करन लगे। माँ सड़क के उ पार हती और हमाई और ही पैदल चली आ रइ ती।
माँ को एंगर देखत ही मोरे भाई की आँखन में चमक आ गई और उ मोरो हाथ छुड़ा के माँ की और भागो।
इसे पेला मैं कछु समझ पाती एक मोटरसाइकिल वाले से भाई जा टकराओ उको कुर्ता मोटरसाइकिल में फंसबे के कारण चेहरे के बल सड़क पे गिर गओ तो।
आज भी उ दिन खा याद करत हो तो सिहर जात हो। ईश्वर की कृपा रई कि उ खा बाल बाल बचा लओ। मैं और माँ उ तरफ दौड़े मैंने अपनी फ्रॉक से उको चेहरा दबा लओ माँ खा आबे में तनक टेम लगो। मोये कुछ समझ नई आ रओ तो मैं का करो?? मोरे हाथ पैर कांप रये ते। माँ के आबे पर मैं दौड़ के अपने पड़ोस वाले अंकल खा बुला ले आई उनके संगे माँ भाई खा अस्पताल ले गई। उ टेम पे हमाये पास फोन भी नई होये करत तो। माँ के जाबे के बाद मैंने एस.टी.डी. बूथ से पापा के ऑफिस फोन कर दओ।
मोरे आँसू लगातार बह रये ते। बेर बेर खुद पे गुस्सा आ रओ तो। "उ तो हल्को है, नादान है, पर मोरे में तो समझ हती मोये उखा सड़क के एंगर ले ही नई जाने तो। अगर ले भी गई तो उको हाथ जोर से काय नई पकड़ो मैंने।"
बार बार उको खून से सनो चेहरो मोरी आँखन के सामने आ रओ तो। आस पड़ोस के मोलक आदमी मोरे एंगर आके इक्कठे हो गए ते। पर सब आपस में जेइ कह रये ते कि मैं माँ पिताजी की डांट के डर से रो रई हो।
मोये बड़ो अजीब लगो की लोग ऐसो भी सोच सकत है क्या भाई के प्रति मोरी कोनऊ भावना नइया?? क्या उकी मोये कोनऊ चिंता नइया?? क्या इ घड़ी में भी मोये अपनी डांट की फिकर हो सकत है। ये सिर्फ एक बहन ही समझ सकत है कोनऊ दूसरो बहन के मन की दशा नइ समझ सकत।
पल पल मैं बस यही दुआ कर रई ती की मोरे भाई खा कछु न भओ होये। लगभग 2 घंटा के बाद माँ पिताजी घर आ पाए। पिताजी ऑफिस से सीधे ही अस्पताल पहुँच गए थे। भाई माँ की गोद मे हतो उके एक साइड के चेहरे पर पट्टी बंधी ती। उखा देखत ही मैं सिहर गई और मैं फेर रोऊंन लगी तब पिताजी मोरे एंगर आके बोले अब रोबे की जरूरत नइया तुमाओ भाई बिल्कुल ठीक है सिर्फ मुँह पे तनक खरोंचे आई है कछु दिनन में बिल्कुल ठीक हो जे है।
सच मे माँ बाप जितनो अपने बच्चन खा कोनउ प्यार नही कर सकत है। उ दिना के बाद मैं भाई के प्रति और जिम्मेदार हो गई ती हमाओ रिश्तो भी गहरे से और गहरो होत गओ। आज जबे भी रक्षाबंधन पे मैं मायके जात हो तो भाई उ दिना खा याद करके मोये जरूर छेड़त है। और मोरी नकल करके मोये रो रो के दिखाउत है। ईश्वर से हमेशा जेइ विनती है कि मोरे प्यारे छोटे भाई को जीवन अपार खुशियन से भरो राये।
और भी न जाने कितने अनगिनत ऐसे किस्से है भाई और मोरे। जो रिश्तो होत ही कछु खास है जो जीवन के विविध उतार-चढ़ाव से गुजर के एक गहरे, बड़े गहरे अहसास के संगे हमेशा नओ और जीवंत बनो रात है। मन के कोनऊ कच्चे कोने में बचपन से लेके युवा होबे तक के, स्कूल से लेके बहन के बिदा होबे तक के और एक-दूजे से लड़बे से लेके एक-दूजे के लाने लड़बे तक की न जाने कितनी यादें दिल मे दबी होत है।
©बबिता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत सुन्दर कहानी
Thankyou kamini ji
वाह!😊😊
वाह
Thankuu @sandeep @savita
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