भेदभाव सही नही

बराबरी की शुरुआत घर से ही करनी होगी

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 30 Jun, 2020 | 0 mins read
Bundelkhandi

हम चायजब देखत है कि लड़का और बिटिया के बीच भेदभाव घर से ही शुरू होत है। और जो मैंने अपने घर मे भी देखो है।

माँ बताउन लगती कि जब मैं भई ती सो हमाई दादी ने मोये देखबे से साफ मना कर दओ तो। बे भगवान खा कोस रई ती कि मोरो सोनो लेके चांदी दे दई। कयसे हमाई माँ की पेहली संतान लड़का हती दुर्भाग्य से उ ज्यादा दिना तक जा दुनिया नई देख पाओ और साल भर के भीतर ही भगवान के एंगर चलो गओ। उके बाद जब मेरो जन्म भओ तो दादी खा बडो बुरओ लगो। मैं उनकी पसंद कबहु नई बन सकी। एइसे बे सबखा जेही काती.. कि भगवान ने मोरो सोनो छीन के चाँदी दे दई।

माँ बताउती है की दादी ने मोये कबहु ओली मे नाइ उठाओ बे तो केवल मोरे चहेरे भाई खा ही लाड़ करत ती, हमेशा उये ही गोद मे लेके खिलाउत ती और मैं हमेशा नेचे अपने आप ही खेले करत ती। कोनहु भी खाबे पीबे की चीज जब दादा ले आउत ते तो उपे भी पेला मोरे भाई को हक होत तो।

उ टेम पापा खा नोकरी के कामन से कई महीनन तक घर से दूर शहर में रहने पड़त तो इसे वे घरे कम ही आउत ते। भेदभाव सिर्फ मोरे तक ही सीमित नई हतो बिटिया जन्मे की कीमत मोरी माँ को भी चुकानी पड़त ती। घर मे सबकछु दूध घी होबे के बाद भी दादी उने कछु खाबे खा नाइ देत ती रुखों सुखों जो मिलो माँ खा लेने पड़त तो।

संयोग से हमाये भाग्य ने करवट लई और पापा की शहर में नोकरी लग गई। पापा खा मोरी और माँ की दशा देखी नई गई और हम पापा के संगे शहर आ गए।

मोरे बाद मोरे दो छोटे भाई बहन और भये लेकन माँ पापा ने कबहु हम में भेदभाव नाइ करो। हम तीनन भाई बहनन खा एक सी शिक्षा, एक एक सी आजादी मिली। अबे भी जब माँ अपने पुरानी बातें बताउन लगत है तो मैं सिहर जात हो के अगर हम शहर न आये होते, पापा की नोकरी न लगी होती तो माँ और मोरो का हाल होतो।

हमाये समाज मे लड़का और बिटिया में इत्तो अंतर काय..? एकई माँ की कोख से जन्मे है फेर भी सिर्फ शारीरिक संरचना के आधार पे एक खा श्रेष्ठ और एक खा कम आँकबो का तक सई है। लोग भूल जात है कि आदमी शारीरिक रूप से मजबूत है सो का भओ औरतन खा भगवान ने जज्बाती मजबूती दई है।

मोरी किस्मत अच्छी हती के मोये ऐसे माता पिता मिले जिन ने मोये लड़कन के घाई आजादी दई पर सबखा ऐसो नई मिल पाउत। अगर आप आने वाली पीढी खा एक स्वस्थ और सुरक्षित जीवन देबो चाहत हो तो उने लड़का लड़की में नाइ बल्कि सई गलत में भेद करबो सिखाओ चाहिए। खाबे पीबे, पहनबे ओढ़बे, घुमबे फिरबे सबन चीजन को अधिकार लड़के लड़कियन को बेरोबर होय। कान लगत है कि लड़कियां लक्ष्मी का अवतार होत है। मगर उने घर और बारे अच्छी शिक्षा मिले तो बे धरती खा स्वर्ग बना सकत है।

मोरी कहानी नौंनी लगी होय तो लाइक और कमेंट जरूर करियों। धन्यवाद

स्वरचित, मौलिक

@बबिता कुशवाहा



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