साओन की बारिश से मोरी मोलक यादें जुड़ी है और इनई यादन में से एक है मोरे शहर छतरपुर की पहली बारिश।
मोये तो बारिश शुरूअई से भोत पसन्द है। बादलन की काली घटाओंन के बीचउ ठंडी हवा को झोंको, झूमत भये पेड़े, माटी की सौंधी खुशबू। मोरे लाने तो जो सावन लाखन का नाइ बल्कि बहुमूल्य ही होत तो।
हमाओ गांव छतरपुर के ही एंगर है। मैं अपने परिवार की बड़ी बिटिया हो एइसे मोरो ब्याओ मोरे दादा-दादी मतलब गांव से होंबो तय भओ। लड़का बाले छतरपुर के ही रेबे वाले हते सो बे भी तुरंत ही इके लाने तैयार हो गए। मोरे ब्याहों के तीन दिना पेला ही मोरो कॉलेज को आखिरी एग्जाम हतो इसे मोरो पूरो परिवार मोये और मोरे भाई खा भोपाल छोड़के गांव के लाने दस दिना पेला ही निकर गए ते। काय से ओने गाँव में ब्याह और गार्डन की तैयारियां देखने ती। और तय भओ के मैं अपनी परीक्षा देतन ही भाई के संगे शादी के दो दिना पेला पहुँच जेहो।
परीक्षा के बादई हम तुरन्त छतरपुर के लाने निकल चुके ते। हमारे ऐते एक रिवाज है कि लड़का और बिटियां की लगुन लिखबे के बाद बे आपस में नाइ मिल सकत। पर आज की पीढ़ी तो जो सब कछु मानत ही नइया। मोरे होबे वाले पति खा जा जानकारी हति कि मैं आज छतरपुर आबे वाली हो। सो उ दिना मोरे लाख मना करबे पर भी बे अपने मन खा रोक न पाये और मोरी एक झलक देखबे के लाने बस स्टैंड के पेला ही गाड़ी लेकर पोहुँच गए।
छतरपुर बस स्टैंड से लगभग 20 km पेला ही उन ने बस रुकवा के मोये उतार लओ। मोरो भाई भी मोरे संगे ही तो बस हमोर खा रास्ते मे ही उतार के जा चुकी ती। जैसई बस ने हमें छोड़ों तबाई अचानक से बादल घिर आये और जोर से पानी बरसन लगो। हम तीनउ दौड़ के गाड़ी में बैठ गए। उनकी आंखें बहुत कछू के रई ती। मैं भले ही उनखा आबे से रोक रई ती पर मिलबे की आग इ कोद भी उतनई बर रई ती। हमने आंखन ही आंखन में बहुत सी बातें कह डाली। दो दिना बाद हमाओ ब्याओ है ऐसे तो हमने आठ सालन तक एक दूजे को इंतजार करो है पर अब जे दो दिना को इंतजार भी हमें पहाड़ सो लग रओ तो।बारिश बढ़तई जा रई ती। इत्ती जोर की बारिश में गाड़ी चलाबो मुश्किल हतो। तभई मेरो फोन बजो।
"कहां हो तम लोग, मैं बस स्टैंड पे ही खड़ो हो बस तो कभाऊ की ऐते आ चुकी है" पापा की आवाज में हमाये लाने चिंता साफ झलक रई ती।
पापा की आवाज सुनत ही मैं घबरा गई। का जवाब दो कछू समझ नाइ आ रओ तो। ओने कैसे बताओ की हम रमेश के संगे है। दूसरी तरफ रमेश को फोन भी लागतार बज रओ तो सबेरे सबेरे बे भी घर से बिना बताए ही मो से मिलबे जो निकल पड़े ते। मोरे संगे संगे भाई को भी डर से बुरओ हाल तो। काय से हमाये इ कांड में उने भी बराबरी को साथ दओ तो।
पर अब हमाये पास अपनो ज़ुल्म स्वीकारबे के अलावा कोनऊ चारो नाइ हतो। आखिर मैंने डरत डरत उन्हें बताओ कि हम रमेश के संगे है और नोने है बारिश कम होतई बस स्टैंड पोहच जैहै। पापा के गुस्से को सोच सोच के अब मोरो मन रमेश से बात करबे में भी नाइ लग रओ तो। जैसे तैसे बारिश कम भई और हम बस स्टैंड पौहच गए पापा तो पेला से ही ओते खड़े ते।
अब तो गांव में भी सभखा पतो चल जैहै पतो नइया सब मोरे बारे में का-का सोच है। डर और टेंशन में बरसात मे भी मोरे माथे पे पसीना घिर आओ। तभई रमेश गाड़ी से उतरत ही पापा से बोले"आप प्लीज प्रिया पर गुस्सा न करियो। मैंने ही इनखा बीच मे रोक लओ तो सोचो तो की अपनी गाड़ी से ऐते तक छोड़ देहो पर इ जोर की बरसात की बजह से हमोर खा रुकने पड़ो।"
रमेश हमें छोड़ के जा चुके ते। पापा ने मोये और भाई खा गांव में कोनऊ से कछु भी न बताबे के लाने कई। जो उनको प्यार तो या कछु और पतो नइया। हमाओ ब्याहों बड़ो अच्छे से सम्पन्न भओ और दो प्रेमी जोड़न को मिलन हमेशा के लाने हो गओ।
आज मैं अपने पति के संगे दूसरे शहर में रात हो पर जब भी कबहु छतरपुर जाबो होत है तो ओते की बारिश को वो दिन जरूर याद आ जात है।
@बबिता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
hindi jaisa he, bundelkhand ka barish padte mai vaha pahuncha
@aravind ji sir hindi se milti julti hi he bundelkhandi. Bas thoda end change ho jata he
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